बुधवार, 8 मार्च 2017

हर कंठ का हार बनी हिन्दी
- डॉ. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

कभी राम के रंग रंगी है कभी घनश्याम के रंग रंगी हिन्दी .
यह प्रेम सुधा बन के बरसी विश्वास के भाव पगी हिन्दी .
रसखान रहीम या गांधी पटेल सभी को ही प्यारी लगी हिन्दी .
इतिहास है ये सब देश जगा जब देश के हेतु जगी हिन्दी .
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कभी सन्त कबीर की बानी बनी कभी मीरा की प्रेम कहानी है हिन्दी .
कभी सूर के श्याम के श्यामल रूप के रंग पगी वो निशानी है हिन्दी .
यही तुलसी की भक्ति की शक्ति बनी प्रभु राम की प्रीति सुहानी है हिन्दी .
हर भाषा मनोहर देश की है पर सबके बीच की रानी है हिन्दी .
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यही देश के भाल की बिंदी हुई यही देश का गौरव गान हुई है .
बरदाई की लेखनी से निकली यही वीरता का प्रतिमान हुई है .
यही राणा-शिवा की धरोहर है यही गांधी-सुभाष का मान हुई है .
एक सूत्र में बाँध रही यह देश को हिन्दी तो माँ के सामान हुई है .
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कभी शीतल चांदनी-सी चमकी कभी तेज भरा दिनमान हुई है .
किसी धर्म ओ जाति से भेद नहीं हर एक को एक सामान हुई है .
कहीं शंख हुई , घड़ियाल हुई , अरदास कहीं तो अजान हुई है .
हर कंठ का हार बनी हिन्दी यही भारत की पहचान हुई है .
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डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ ,
मोबाइल -09559304131
इमेल-yogishams@yahoo.com


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