रविवार, 23 अप्रैल 2017


मौत इक तू ही बस खरी निकली |
वक़्त पत्तों को कर गया पीला ,
दर्द की जड़ मगर हरी निकली |
जिसने ईमान को रखा ज़िंदा ,
जेब उसकी मरी-मरी निकली |
सामना जब कभी हुआ खुद से ,
सबकी हिम्मत डरी-डरी निकली |
न्याय की अवमानना पर गौर हो ,
अब हमारी प्रार्थना पर गौर हो .
खिड़कियाँ अब सोच की मत बंद हों ,
हर नई संभावना पर गौर हो .
आज तक 'जन ' को उपेक्षित ही किया ,
तंत्र की दुर्भावना पर गौर हो .
दीनता बागी न हो जाए कहीं ,
वक़्त है हर याचना पर गौर हो .
गीत जीवन के निरंतर गा रहा ,
'शम्स' की इस साधना पर गौर हो .
--- शम्स
जटिल हो गए जीवन के मुद्दे ,
सरल करेंगे उनमें से दो-चार ।
फेसबुक की दुनिया से निकलें ,
थोड़ी देर कहीं मिल बैठें यार ।
जितना चाहें जी भर के हँस लें ,
जितना चाहें जी भर के रो लें ।
अपने-अपने जीवन की गांठें ,
आओ मुखर होकर के हम खोलें ।
आपाधापी में आखिर कब तक ,
सिर्फ बुनेंगे आभासी संसार ।
फेसबुक की दुनिया से निकलें ,
थोड़ी देर कहीं मिल बैठें यार ।
हम क्या समझें घर का अपनापन ,
हम तो बनकर सिर्फ मकान रहे ।
दूर-दूर तक परिचय खूब बढ़ा ,
आस-पास से पर अनजान रहे ।
भव्य इमारत हमने गढ़ तो ली ,
लेकिन दरका-दरका है आधार ।
फेसबुक की दुनिया से निकलें ,
थोड़ी देर कहीं मिल बैठें यार ।
सद्भावों के ताज़े सुन्दर पुष्प ,
कभी-कभी तो भेजें रिश्तों को ।
अपनेपन का दे करके स्पर्श ,
आओ चलें सहेजें रिश्तों को ।
शाम तलक जो हो जाए बासी ,
रिश्तों को मत बनने दें अखबार ।
फेसबुक की दुनिया से निकलें ,
थोड़ी देर कहीं मिल बैठें यार ।
--- डॉ. दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

बुधवार, 29 मार्च 2017

बाल कवितायें



-डॉ. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

सूरज
उजियारे को लाता सूरज .
रोज सवेरे आता सूरज .
नन्ही किरणों से इस जग को ,
है गतिशील बनाता सूरज .
चिडियाँ चहकीं इसे देखकर ,
सुरभित पुष्प खिलाता सूरज .
आते हैं जब सर्दी के दिन ,
सबके मन को भाता सूरज .
गर्मीं के मौसम में सबको ,
आखिर खूब सताता सूरज .
बस आगे ही बढ़ते रहना ,
ये सन्देश बताता सूरज .


बादल
उमड़-घुमड़ कर आये बादल .
देखो नभ पर छाये बादल .
प्यास बुझाने को धरती की ,
लेकर पानी आये बादल .
पहनाने के लिए धरा को ,
चूनर धानी लाये बादल .
नाचा मोर पपीहा कुहुका ,
जिसे देख हरषाये बादल .



फूल
सुन्दर-सुन्दर प्यारे फूल .
रंग-बिरंगे न्यारे फूल .
सारे उपवन को महकाते ,
सबके बड़े दुलारे फूल .
बाँध रहे हैं आकर्षण में ,
करते मधुर इशारे फूल 

नवगीत


कुहरे में डूबी है शाम

कुहरे में डूबी है शाम ,
जी भर के जी लें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||
मिल-बैठ सुनें ज़रा आओ ,
मौसम की आहट |
ठण्डे हैं पड़ गए रिश्ते ,
भर दें गरमाहट |
मौका है चलो दें निकाल ,
कटुता की कीलें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||
फिर से इशारों में खेलें ,
प्यार वाला खेल |
जो कुछ भी मन में है दबा ,
सब कुछ दें उड़ेल |
मन से हो मन का संवाद ,
होंठों को सी लें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||
जितने भी हैं शिकवे-गिले ,
बिसरायें सारे |
रात के आँचल में मिलकर ,
टाँक दें सितारे |
गहरा न जाये अन्धकार ,
जला दें कंदीलें |
आओ मित्र एक कप चाय ,
साथ-साथ पी लें ||


डॉ. दिनेश त्रिपाठी शम्स
जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम व पोस्ट-घुघुलपुर ,
जनपद – बलरामपुर -271201 , उत्तर प्रदेश
मोबाइल- 9559304131
ईमेल- yogishams@yahoo.com

‘तंत्र ’ तो रंगीनियों में मस्त है


‘तंत्र ’ तो रंगीनियों में मस्त है ,
‘लोक’ है बदहाल ,बेहद पस्त है .
तन भले ही हो गया सन्यस्त है ,
मन विकारों से अभी तक ग्रस्त है .
खुद से मिलने की नहीं फुर्सत उसे ,
आज का हर व्यक्ति इतना व्यस्त है .
देखकर कीमत न चौंकें मान्यवर ,
इसमें ‘सुविधा-शुल्क’ भी विन्यस्त है .
रहनुमाओं लूट लो जी भर इसे ,
देश इसका हो चुका अभ्यस्त है .
‘शम्स’ की आँखों में सपने हैं अभी ,
वो नए कल के लिए आश्वस्त है .


यूं तो कहने को हम आधुनिक हो गए ,
सुख के दिन जिंदगी में क्षणिक हो गए .
सामना सच का करने लगे हैं सभी ,
'मूल्य' सच के सभी काल्पनिक हो गए .
गांधी ,गौतम के इस देश में जाने क्यों ,
 हर तरफ क्रूर-निर्मम वधिक हो गए .
हर तरफ आसुरी वृत्तियाँ हैं यहाँ ,
राम दुर्लभ हैं , रावण अधिक हो गए .
भावनाएं हमारी लगे बेचने ,
चौथे खम्बे सभी अब वणिक हो गए .
जाति में , धर्म में , क्षेत्र में बंट गए ,
हम बहुत थे मगर अब तनिक हो गए .
प्रेम में इस कदर आत्मिक हम हुए ,
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर वायविक हो गए .
शब्द की जबसे ताकत मिली 'शम्स ' को ,
वो मुखर हो गए , साहसिक हो गए .
और इसी गज़ल में एक शेर हज़ल का भी गौर फरमाएं -
जब घोटाले में पकड़े गए आप तो ,
दिल की धड़कन बढ़ी और 'सिक ' हो गए .

सोमवार, 20 मार्च 2017

दोहे

दीप जलाकर मत करें उजियारे का शोर .
देना है तो दीजिए हमें सुनहरी भोर .
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लिखा दीप ने गर्व से पत्र सूर्य के नाम .
जगकर मैंने रात भर किया तुम्हारा काम .
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दीपक की सम्वेदना पा बाती का प्यार .
रचने लगी उमंग में ज्योतिर्मय संसार .
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प्रियवर मेरे जब कभी आये आप समीप .
अरमानों के जल उठे मन में सौ-सौ दीप .
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बाती जैसा मन हुआ हुआ तेल-सा नेह .
दीपक जैसी रात भर जली सेज पर देह .
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जली वर्तिका रात भर जला साथ में तेल .
दोनों को जलना पड़ा यही प्यार का खेल .
****





डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131

इमेल-yogishams@yahoo.com

दोहे

ज्यों के त्यों हैं गाँव सब घर-घर वही किसान .
परिवर्तन के सुख मगर लूटें ग्राम प्रधान .
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सामंतों के देश में दमन भूख संत्रास .
लोकतंत्र का कर रहे गाँव-गाँव उपहास .
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कागज़ पर ही बस हुआ थोड़ा-बहुत विकास .
तब भी गाँव हताश थे अब भी गाँव हताश .
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सपने खोकर नगर में भटक रहे हम यार .
इससे तो अच्छा वही अपना गाँव-जंवार.
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फसल कटी चिंता हटी घर में हुआ अनाज .
पिछली रंजिश के हुए तीखे हर अंदाज़ .
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बात न्याय की क्या करें हाल हुआ बेहाल .
पुलिस-अदालत हो गई अब जी का जंजाल .
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चिंता सर पर चढ गई बेटी हुई जवान .
कर्ज माँगता फिर रहा बूढा बाप किसान .
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अबकी जल बरसा नहीं खाली है खलिहान .
अगहन में गौना बदा साँसत में है जान .
****
जब-जब साहूकार नें करवाया बेगार .
पानी पीकर सो गया मंगरू का परिवार .
****
ठाकुर के दालान में होने लगा जमाव .
परधानी का आ गया अब नज़दीक चुनाव .
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,

ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .

बुधवार, 8 मार्च 2017

कवितायें :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

वर्जित फल
मैं जानता हूँ
बहिष्कृत हो जाऊँगा
चेतना के स्वर्ग
पर क्या करूँ इस प्रेम का
मैं आदम हूँ
पाना चाहता हूँ तुम्हें
वर्जित फल की तरह
++++++++


पीड़ा की नदी
पीड़ा की नदी
दिल के पर्वत से निकलकर
आँखों के समंदर
से जा मिली
और खारी हो गई .



डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .

मोबाइल -09559304131
गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

विष बुझी जब-जब हवायें चल पड़ीं ,
डाल से गिरने लगीं तब पत्तियां .
           खूंटियों पर स्वार्थ के लटकी हुई ,
           छ्द्मवेशी आस्थायें डोलतीं हैं .
           लाभ हो या हानि लेकिन तुला पर ,
           स्वयं को संवेदनायें तोलतीं हैं .
है समय के कक्ष में फिर से घुटन ,
बन्द सारे द्वार सारे खिड़कियां
           है यहां कुछ शेष पैनापन अभी ,
           सृजन की मिटती-मिटाती धार में .
           दर्द की स्मारिकायें छाप कर ,
           बेचते हैं लोग अब बाज़ार में .
खूबसूरत जिल्द से भीतर छपी ,
अर्थ अपना पूछ्ती हैं पंकितयां .
            सांस लेकर कैक्टस की छांव में ,
            ज़िन्दगी अब प्रगतिवादी हो गयी है .
            किन्तु सूनापन अखरता है बहुत ,
            जैसे कोई चीज़ अपनी खो गयी है .
बिन पढ़े ही देखिए फेंकी गयीं ,
डस्टबिन में प्यार की सब चिट्ठियां .
               
                                            डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com