शनिवार, 25 अप्रैल 2020


ग़ज़ल 
हमको दुनिया के करतब नज़र गए ,
इसलिए लौटकर अपने घर गए।
दूर तक कोई मंज़िल है दिखती नहीं ,
हम चले थे किधर , ये किधर गए।
बात ही बात में बात उड़ने लगी ,
यूँ लगा बात के जैसे पर गए।
आँख ने रूप का पान जब कर लिया ,
प्यास लेकर नयी तब अधर गए।
ज़िंदगी एक बेरंग तस्वीर थी ,
तेरे आने से कितने कलर गए।
ये अदीबों की महफ़िल है इसमें भला ,
शम्स तुम किसलिए बे बहर गए।
                
               -- डॉ॰ दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'


ग़ज़ल 
मेरे जीवन में जगमग  उजाला करो ।
नेह की दृष्टि मुझपर भी' डाला करो ।
मैं ज़माने की ठोकर से जब भी गिरूं ,
अपनी' बाहों में मुझको संभाला करो ।
बन सको तो समाधान बनकर रहो ,
यूँ समस्या न केवल उछाला करो ।
ज़िन्दगी की हक़ीक़त हो' कड़वी अगर ,
कुछ मधुर स्वप्न आंखों में पाला करो ।
बेवजह अपना' मिलना नहीं ठीक है ,
कुछ बहाने मिलन के निकाला करो ।
ख्वाहिशें कर न लें खुदकुशी एक दिन ,
ख़्वाहिशों को हमेशा न टाला करो ।
                       --- डॉ॰ दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'