ग़ज़ल
हमको दुनिया के करतब नज़र आ गए ,
इसलिए लौटकर अपने घर आ गए।
दूर तक कोई मंज़िल है दिखती नहीं ,
हम चले थे किधर , ये किधर आ गए।
बात ही बात में बात उड़ने लगी ,
यूँ लगा बात के जैसे पर आ गए।
आँख ने रूप का पान जब कर लिया ,
प्यास लेकर नयी तब अधर आ गए।
ज़िंदगी एक बेरंग तस्वीर थी ,
तेरे आने से कितने कलर आ गए।
ये अदीबों की महफ़िल है इसमें भला ,
शम्स तुम किसलिए बे बहर आ गए।
-- डॉ॰ दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'