रविवार, 23 अप्रैल 2017

न्याय की अवमानना पर गौर हो ,
अब हमारी प्रार्थना पर गौर हो .
खिड़कियाँ अब सोच की मत बंद हों ,
हर नई संभावना पर गौर हो .
आज तक 'जन ' को उपेक्षित ही किया ,
तंत्र की दुर्भावना पर गौर हो .
दीनता बागी न हो जाए कहीं ,
वक़्त है हर याचना पर गौर हो .
गीत जीवन के निरंतर गा रहा ,
'शम्स' की इस साधना पर गौर हो .
--- शम्स

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