सोमवार, 26 मार्च 2012

पाहन में प्यार बसाने वाले मूर्ख हुआ करते हैं


धवल चांदनी यहाँ कि जैसे उतर आई हो धरती पर ,
और सौंदर्य की प्रतिमा शाश्वत ज्यों साकार हुई हो .
देवों का सारा ही वैभव यहाँ हुआ नतमस्तक है ,
अनुपम इसके आगे जैसे उपमानों की हार हुई हो .
यमुना के बहते जल में जब ताजमहल की छवि पड़ती है ,
लगता है कि दुग्ध-धवल –सी कोई अप्सरा नहां रही हो .
आकर्षण का एक जाल जो अपने चारों ओर बुन रही ,
सम्मोहन में बाँध-बाँध कर ह्रदय-ह्रदय को बुला रही हो .
प्रिया-वियोग से पीड़ित होकर भग्न ह्रदय राजा ने ,
संगेमरमर पर लिखवाई अपनी प्रेम-कहानी .
शाहजहाँ की ह्रदय-स्वामिनी लीन यहाँ चिर-निद्रा में ,
कहते हैं की ताजमहल है अमर प्रेम की अमर निशानी .
ताजमहल के पाहन में मुमताज महल की यादें हैं ,
ताजमहल के पाहन में तो शाहजहाँ का प्यार बसा है .
और कहा जाता है यह भी ताजमहल बनवा करके ,
शाहजहाँ ने प्यार शब्द को रूप दिया है , अर्थ दिया है .
किन्तु प्यार तो अंतरतम के गहन –लोक में बसता है ,
स्मृतियाँ भी सदा बसा करती हैं मन-आँगन में ,
भला प्यार का जड़ता से क्या नाता हो सकता है ,
प्यार चेतना का आधार रहा सदा जीवन में .
पाहन में प्यार बसाने वाले मूर्ख हुआ करते हैं ,
शाहजहाँ भी मूर्ख कि जिसने पाहन में प्यार बसाया है .
कौन भला कहता कि उसने हँसी उड़ाई रंकों की ,
सच तो यह है उसने खुद अपना मजाक उड़ाया है .
एक बादशाह जो शोषक था समता का प्रबल विरोधी ,
यह ताजमहल उस शोषण की अब भी दे रहा गवाही है .
भले राष्ट्र की शान बना यह वर्षों बाद भी चमक रहा है ,
लेकिन इसके उजलेपन के पीछे सिर्फ सियाही है .