सोमवार, 12 दिसंबर 2011


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अनूप आकाश वर्मा एक सशक्त युवा पत्रकार हैं . आप मासिक पत्रिका 'पंचायत सन्देश' के संपादक हैं . अनूप न केवल अपने समय के विद्रूप को बखूबी देखते हैं और समाज को जागरूक करते हैं बल्कि उन सकारात्मक पहलुओं को भी अपने पाठकों तक पहुंचाते हैं जिनका विस्तार एक स्वस्थ एवं विकसित समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण है. अनूप मेरे आत्मीय अनुज हैं . यहाँ प्रस्तुत है 'पंचायत सन्देश' से साभार लिया गया उनका एक आलेख . आपकी राय की प्रतीक्षा रहेगी .

....ताकि पंचायतें अपनी सशक्त भूमिका निभा सकें|
- अनूप आकाश वर्मा


     महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज का स्वप्न तब तक पूर्ण नहीं हो सकता जब तक पंचायती राज के जनप्रतिनिधि अपनी पूरी ज़िम्मेदारी,सारे अधिकार व कर्तव्यों से भली-भाँती परिचित न हो जाएं..शायद इसलिए इस बात से कदापि इंकार नहीं किया जा सकता कि जब तक वे खुद अपना महत्त्व नहीं समझेंगे तब तक यकीन मानिए देश के अंतिम व्यक्ति की बात कुछ ख़ास लोगों के बीच में आम लोगों की जिरह भर है जो इस योजना से उस योजना और फाईल-दर-फाईल  होती हुई एक लंबा रास्ता तय करने के बाद भी मंजिल अपनी तक नहीं पहुँचती| पंचायती राज में सभी जनप्रतिनिधि सजग हों, इसके लिए पंचायती राज मंत्रालय भी गंभीर है| जिसने हाल ही में सभी राज्य सरकारों से ग्रामीण क्षेत्रों की पंचायतों में क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण को बढाने की बात कही है| इस संबंध में जारी एक पत्र में मंत्रालय ने कहा है कि इसके लिए नियत निधि का पूर्ण उपयोग होना चाहिए| पत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि इस संबंध में संसदीय समिति के अवलोकन को ध्यान में रखते हुए राज्यों को पहले ही सूचित किया जा चुका है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक पंचायत प्रतिनिधि को वर्ष में कम से कम एक बार प्रशिक्षण अवश्य दिया जाए साथ ही राज्यों को निर्वाचित एवं आधिकारिक पदाधिकारी के लिए प्रशिक्षण आवश्यकता, मूल्यांकन, अभ्यास कार्यक्रम का उत्तरदायित्व लेना होगा ताकि विषय-वस्तु और प्रशिक्षण की पहचान की जा सके| एक और बात सरकार को चाहिए कि वो अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में अधिक से अधिक महिला प्रशिक्षकों को शामिल करें,इससे उन महिला जनप्रतिनिधियों को भी प्रशिक्षण केन्द्रों में सहज वातावरण मिलेगा जो पंचायती राज में आधी से अधिक की भागीदारी में अपनी भूमिका निभा रही हैं
    स्मरण हो तो महात्मा गांधी ने त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की जगह ग्राम,मंडल,जिला,प्रांत और केंद्र के स्तर तक पांच स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की वकालत की थी ताकि सभी स्तरों की शासन प्रणाली की प्रक्रियात्मक एकरूपता बनी रहे| लेकिन त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को मान्यता देते हुए राज्य और केंद्र के स्तर पर पंचायतों के विचार अमान्य कर दिए गए| खामियाजा यह हुआ कि ऊपरी दोनों स्तरों पर संसदीय व्यवस्था के नियमों के आधार पर काम-काज होता है जबकि स्थानीय निकायों के तीनों स्तरों पर कार्य प्रणाली का संकट बना हुआ है| पंचायतों को संविधान में ११ वीं अनुसूची में निर्दिष्ट २९ कार्यक्षेत्र दिए गए हैं| अधिकांश राज्यों ने राज्य पंचायती राज अधिनियम और नियमावली बना ली है जिसमें उन्होंने ऐसे विषयों का भी उल्लेख किया है जिनसे संबंधित कार्य भी पंचायतों को सौंपे जायेंगे| सभी तीन स्तरों पर कार्यों,निधियों और कार्मिकों का सहवर्ती तथा एक साथ प्रत्यायोजन सुनिश्चित करने के लिए मुख्यत: क्रियाकलाप मानचित्रण की प्रक्रिया के माध्यम से प्रभावी प्रत्यायोजन किया जाना अभी बाकी है| पंचायती राज के पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती पंचायतों की क्षमता सुनिश्चित करना है  जिससे कि वो सौंपी गयी जिम्मेदारियों को प्रभावी रूप से अंजाम दे सकें| ऐसे अनेकों सुस्थापित तथ्यों के बावजूद कि दायित्वों का निर्वाह अपने आप में प्रशिक्षण की एक इष्टतम विधि है,कार्यों का प्रत्यायोजन न करना अथवा पंचायतों को सामर्थ्यविहीन बनाने के लिए प्रशिक्षण की कमी एक बहाना बनी हुई है| अत: प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पंचायतों की क्षमता पूरी तरह निर्मित की जानी ज़रूरी है| ऐसा करने के लिए प्रशिक्षण,उपयुक्त कार्मिकों,तकनीकी सहायता तथा पंचायतों के लिए अनेक तरह की सहायता का प्रावधान किया जाना चाहिए| दिसंबर,२००४ में जयपुर में आयोजित पंचायती राज के राज्यमंत्रियों के सातवें गोलमेज सम्मलेन में पंचायतों के सभी स्तरों पर निर्वाचित प्रतिनिधियों तथा कार्मिकों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के विषय पर अनेक कार्य बिंदु अपनाए गए थे जिनका उद्देश्य पंचायती राज के निर्वाचित प्रतिनिधियों,अधिकारियों,सरपंचों,उप-सरपंचों राज्य कानून के अधीन पंचायतों जो प्रत्यायोजित विषयों से संबंधित स्थाई समितियों के अध्यक्षों की प्रभावी और क्षमता का व्यापक रूप से निर्माण करना है| प्रशिक्षण का सीधा उद्देश्य पंचायत के निर्वाचित प्रतिनिधियों को इस योग्य बनाना है कि वे अपने ज्ञान और कौशलों का स्तरोन्नयन कर सकें| जिससे कि वे पंचायतों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का बेहतर ढंग से निर्वाह कर सकें|  
     पंचायती राज के जनप्रतिनिधियों तथा पदाधिकारियों को पंचायती राज संबंधी समस्त जानकारी उपलब्ध कराने व पशिक्षण देने के लिए वर्तमान में ढेरों राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर की संस्थाओं के साथ-साथ अन्य सरकारी संस्थाएं मौजूद हैं| इसमें गैर-सरकारी संगठन व अन्य संस्थाएं भी अपनी महती भूमिका अदा कर रही हैं| राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं में सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस,आँध्रप्रदेश, गांधीग्राम ग्रामीण विश्वविद्यालय,तमिलनाडु, इन्द्रा गांधी राष्ट्रीय खुला विश्वविद्यालय,दिल्ली, राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान,हैदराबाद आदि प्रमुख हैं|राज्य स्तर की  संस्थाओं में उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगड, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, गोवा, गुजरात,महाराष्ट्र, राजस्थान, अरूणाचल प्रदेश आदि राज्यों में ग्रामीण विकास संस्थान मौजूद हैं|इसके अलावा अन्य सरकारी संस्थाओं में पंचायती राज निदेशालय,मध्यप्रदेश, पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान,उत्तर प्रदेश, पंचायती राज विभाग,बिहार आदि मुख्य रूप से हैं| नॉलेज फैक्ट्री ,ससर्ग,सहभागी शिक्षण केंद्र,उन्नति,आलोचना,राजीव गांधी फौंडेशन,पथ आदि अनेकों गैर-सरकारी संगठन भी इस दिशा में कार्यरत हैं|
     इसी संबंध में पंचायती राज की स्थानीय स्वशासन क्षमता विकास परियोजना का शुभारम्भ २००८ में हुआ, जिसमें पिछले दो वर्षों के दौरान राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये गए और विभिन्न प्रकार की सामग्री तैयार की गयी जिससे पंचायती राज में जनप्रतिनिधियों व पदाधिकारियों को अधिक से अधिक सशक्त बनाया जा सके| राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम द्वारा अनुसमर्थित स्थानीय स्वशासन क्षमता विकास परियोजना का सीधा उद्देश्य प्रेरणा-वृद्धि,संयुक्त निर्णय,संसाधनों (उदाहरण के लिए नेटवर्कों, संसाधन व्यक्तियों/संस्थाओं, प्रशिक्षण पाठ्यक्रम सामग्री, सूचना, नवाचारपूर्ण समाधानों और पध्दतियों) की व्यवस्था और व्यक्तिगत सशक्तीकरण के माध्यम से व्यवहारगत बदलाव लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर संस्थाओं और प्रक्रियाओं को मजबूत बनाना है।55 लाख अमरीकी डालर के बजट वाली इस परियोजना (2008-2012) के मुख्यत: दो घटक हैं, राष्ट्रीय घटक और राज्य घटक। राष्ट्रीय स्तर पर पंचायती राज मंत्रालय कार्यान्वयन साझेदार है और राज्य स्तर पर परियोजना का कार्यान्वयन राज्य पंचायती राज विभागों और राज्य ग्रामीण विकास संस्थानों के माध्यम से वर्तमान में  सात राज्यों बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में किया जा रहा है|  परियोजना का मुख्य कार्य क्षमता विकास रणनीतियों को मजबूती प्रदान करना, नीतिगत शोध और नेटवर्क सहायता, पक्ष-पोषण और कार्य के सर्वोत्तम व्यवहारों या तौर-तरीकों में हिस्सेदारी, समुदाय सशक्तीकरण और लामबंदी परियोजना का अनुश्रवण, मूल्यांकन और क्षमता विकास आदि के लिए सहायता प्रदान करना है| यह परियोजना पंचायती राज मंत्रालय द्वारा विकसित राष्ट्रीय क्षमता निर्माण ढाँचे का पालन करती है जिसमें यह अपेक्षा की जाती है कि पंचायती राज संस्थाओं के जनप्रतिनिधि और अधिकारी  स्थानीय स्वशासन क्षमता विकास परियोजना के अंतर्गत निष्पादित कार्यों के माध्यम से बेहतर ढंग से कार्य करने हेतु अपनी क्षमताओं में सुधार ला सकेंगे
     वर्तमान में इन्द्रा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान या इस सरीखे अन्य प्रशिक्षण केन्द्रों का प्रमुख उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं के चुने हुये प्रतिनिधियों तथा पदाधिकारियों को प्रशिक्षित करना  है|  इसी के अनुरूप ये संस्थान विभिन्न कार्यक्रमों परियोजनाओं के तहत लक्षित समूहों को प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं,ताकि ग्रामीण विकास की विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए उनकी क्षमताओं का विकास हो सके वे पंचायती राज संस्थाओं के कार्यों,उनकी जिम्मेदारियों आदि के बारे में  एक आमुखीकरण रूप तैयार कर सकें| जिससे पंचायती राज सही मायनों में अपनी भूमिका निभा सके|  इसके अलावा ये संस्थान ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज विभाग के अधिकारियों एवं चुने गए प्रतिनिधियों के लिए विकेंद्रीकृत नियोजन, ग्रामीण विकास, सुशासन, कम्प्यूटर की मूलभूत जानकारी, तनाव प्रबंधन, साक्षरता मिशन, आदि विषयों पर भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं| महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रशिक्षण केन्द्रों को चाहिए कि वो विकेंद्रीकृत अभियान के रूप में प्रभावी तरीके से पंचायती राज संस्थाओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम को आयोजित करने के लिए आवश्यकता आधारित एक व्यूहरचना तैयार करें| जिससे समूचा प्रशिक्षण एक योजनाबद्ध तरीके से कार्यान्वित हो अपने लक्ष्य को प्राप्त करे| इसके लिए ज़रूरी है कि हम पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से बाँट लें| जिसमें पहले ही प्रशिक्षण की आवश्यकताओं का आंकलन,प्रशिक्षण मोड्यूल एवं सामग्री का विकास,प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण,पंचायती राज संस्थाओं का प्रशिक्षण, प्रशिक्षणों के प्रभाव का मूल्यांकन आदि तय हो| विभिन्न स्टोकहोल्डर्स के साथ कार्यशालाओं के माध्यम से विचार-विमर्श,मंथन सत्रों,केन्द्रित समूह चर्चाओं,ओपीनियन पोल तथा गहन साक्षात्कारों के माध्यम से प्रशिक्षण की आवश्यकताओं का आंकलन किया जाता है| प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं के आंकलन के आधार पर पंचायती राज संस्थाओं की विभिन्न श्रेणियों के कार्यकर्ताओं के लिए उचित प्रशिक्षण मोड्यूल व सामग्री का विकास किया जाता है| प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण चरण सबसे महत्वपूर्ण चरण है  जिसमें प्रशिक्षण संस्थान,राज्य के प्रत्येक खंड से आये प्रशिक्षकों को इसके लिए तैयार करता है जिससे वे संस्थान द्वारा दिए गए मोड्यूल तथा प्रशिक्षण सामग्री के आधार पर पंचायती राज के कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दे सकें| इससे अगले चरण में विकेंद्रीकृत केस्केड प्रशिक्षण का प्रवाह राज्य के सभी खण्डों में एक साथ होता है जिसमें संस्थान द्वारा प्रशिक्षित किये गए प्रशिक्षण संस्थान के सुपरविज़न तथा तकनीकी सहयोग से पंचायती राज के चुने गए प्रतिनिधियों तथा पदाधिकारियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है| २००३ में हुए प्रशिक्षण संस्थाओं के प्रशिक्षण के बाद से संस्थानों ने प्रशिक्षणों के प्रभाव के मूल्यांकन पर भी जोर दिया है| जिसमें स्वयं सेवी संस्थाओं ने बढ-चढ़ कर हिस्सा लिया जिन्हें पूर्व में ही संस्थान द्वारा प्रभाव संबंधी मूल्यांकन का ३६० डिग्री का अध्ययन करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है| इसके अलावा मनरेगा के लिए भी इसी प्रकार का प्रयास अधिकारियों तथा चुने हुए जनप्रतिनिधियों के प्रशिक्षण हेतु किया जाना चाहिए,जो कई संस्थानों द्वारा होता भी है
     पंचायती राज के पदाधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण में मानव विकास,पंचायती राज संस्थाओं द्वारा क्रियान्वित की गयी प्रमुख विकास योजनायें,वित्तीय प्रबंधन,प्रशासनिक व कार्यालय प्रबंधन,व्यक्तित्व विकास,उभरती हुई चुनौतियां आदि प्रमुख रूप से होती हैं| इन सभी योजनाओं व प्रशिक्षण कार्यक्रमों का सीधा उद्देश्य है कि पंचायती राज के जनप्रतिनिधि अपनी ज़िम्मेदारी समझें,उन्हें अपने अधिकार व कर्तव्य पता हों| इसमें अखिल भारतीय पंचायत परिषद भी अपनी प्रमुख भूमिका निभाने में पूरी तरह समर्थ है,जिसका मुख्य कार्य प्रशिक्षण,मूल्यांकन और दिशा-निर्देशन है| पूर्व में भी परिषद इस तरह के कार्यक्रमों के लिए राष्ट्रीय मंच प्रदान करती रही है| यद्यपि वर्तमान समय में भले ही पंचायती राज में इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों को राज्य और केंद्र के बीच में संचालित करने की रूपरेखा तैयार की गयी हो किन्तु जो वास्तविकता अभी तक उभर कर सामने आई है उसमें साफ़ है कि प्रशिक्षण संबंधी राज्य और केंद्र की नीतियों का समुचित निर्धारण समयानुसार नहीं हो पाता है और न ही पूर्ण जानकारी ही जनप्रतिनिधियों तक पहुँच पाती है,जिसके जमीनी दुष्परिणाम विकास की बाधाओं के रूप में सामने आते हैं| तो ऐसी गलत नीतियों के मकड़जाल से उभरना भी पंचायती राज के लिए प्रमुख रूप से बड़ी चुनौती है
     पंचायतों के तीन स्तरों के लिए लगभग २२ लाख प्रतिनिधियों का चुनाव होता है और ऐसा अनुमान है कि विभिन्न स्तरों पर ८ लाख महत्वपूर्ण कर्मचारी हैं जोकि पंचायतों से संबंधित हैं या उनके अधीन काम करते हैं|एक अनुमान के मुताबिक़ इनमें से अधिकांश को अपने संबंधित विभागों द्वारा असंतोष प्रशिक्षण प्राप्त होता है क्योंकि देखा गया है कि ये विभाग अक्सर इस प्रयोजन के लिए पर्याप्त निधियां अलग से नहीं रखते| उन्हें दिशा-अनुकूलन प्रशिक्षण की ज़रुरत होती है जिसका मुख्य उद्देश्य यह होता है कि पंचायत सदस्यों के प्रति उनके भीतर सही ढंग की सोच पैदा की जा सके जिससे और अधिक सौहार्दपूर्ण संबंधों को बढ़ावा मिले और साथ ही उन्हें पंचायतों द्वारा प्रस्तुत अवसरों का लाभ उठाने दिया जाए जिससे कि पंचायतों में एक ऐसा वातावरण तैयार हो जहां देश के सबसे निचले स्तर पर होने वाले विकास में भी आम आदमी की सहमति उसका सहयोग परिलक्षित हो,साथ ही सरकार को चाहिए कि यदि संभव हो तो वो ऐसे कार्यों में अधिक से अधिक युवा वर्ग को भी तरजीह दे जो पंचायती राज के इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में जनप्रतिनिधियों के अन्दर अपनी मेहनत व लगन से  देश के अंतिम व्यक्ति की बात को मुख्य पटल  पर प्रभावी ढंग से रखने का ज़ज्बा पैदा कर बापू के ग्राम-स्वराज के स्वप्न को सही अर्थों में पूर्ण कर सकें|      

                                                                          
- अनूप आकाश वर्मा
 (साभार ; पंचायत सन्देश, अगस्त अंक में प्रकाशित )