मंगलवार, 31 अक्तूबर 2023

मेधावी विद्यार्थियों के लिए कार्य-योजना

 

मेधावी विद्यार्थियों के लिए कार्य-योजना

मेधावी विद्यार्थी वे हैं जो समान उम्र के अन्य विद्यार्थियों की तुलना में अधिक बौद्धिक , रचनात्मक तथा कलात्मक हैं , जो नेतृत्व की क्षमता रखते हैं तथा शैक्षणिक विषयों में अपने उच्च प्रदर्शन की क्षमता का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं | अधिकांशतः हम सपोर्टिव लर्नर या कमजोर विद्यार्थियों के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के  लिए ही कार्य-योजना निर्मित करते हैं और मेधावी विद्यार्थियों को यह सोचकर उनके हाल पर छोड़ देते हैं कि यह तो अच्छा करेंगे ही | ऐसा सोचना  हमारी बहुत बड़ी भूल है | हमें मेधावी विद्यार्थियों के लिए भी कार्य-योजना निर्मित करनी चाहिए |  सबसे पहले तो हम यह जान लें कि हमें कुशाग्र विद्यार्थियों के लिए कार्य-योजना क्यों निर्मित करनी चाहिए |

1-  कुशाग्र विद्यार्थी अपना काम अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा पहले पूरा कर लेते हैं ऐसी दशा में वे अपना समय शरारत या दूसरे  विद्यार्थियों के काम में व्यवधान डालने में भी लगा सकते हैं | उनके नकारात्मक गतिविधियों में संलिप्त होने की संभावना बढ़ सकती है |

2-  कुशाग्र विद्यार्थियों को उनके बौद्धिक स्तर के अनुरूप खुराक नहीं मिलेगी तो वे पढ़ाई को बहुत आसान समझने लगेंगे और उनका मन पढ़ाई से उचट जाएगा |

3-  मेधावी विद्यार्थियों की क्षमताओं का समुचित इस्तेमाल न होने पर धीरे-धीरे उनकी क्षमताओं का ह्रास होता जाएगा |

4-  मेधावी विद्यार्थियों को सही प्रेरणा व दिशा मिल जाये तो वे घर , परिवार , विद्यालय , समाज सभी के लिए एक एसेट बन सकते हैं और समाज के विकास में अपना मौलिक योगदान दे सकते हैं |

मेधावी विद्यार्थियों के लिए बनाई जाने वाली कार्य-योजना के कुछ सुझाव यहाँ दिये जा रहें हैं | हर विद्यार्थी की अपनी अलग प्रवृत्ति व अलग जरूरतें होतीं हैं अतः स्थानीय स्तर पर आवश्यकतानुसार इन सुझावों के अतिरिक्त भी कुछ योजनाएँ बनाई जा सकती है | ये सिर्फ कुछ सामान्य  सुझाव हैं –

1-    अध्यापक द्वारा मेधावी विद्यार्थियों को कठिन व विचारोत्तेजक प्रश्न हल करने के लिए दिये जाने चाहिए ताकि उनकी क्षमता का अधिकतम उपयोग हो सके |

2-    अध्यापक को चाहिए कि वे मेधावी विद्यार्थियों को अन्य विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए प्रेरित करें | अच्छा हो कि अध्यापक मेधावी बच्चों का कमजोर बच्चों के साथ समूह निर्मित करे | बच्चे अपने समवयस्क से अधिक सुगमता से सीखते हैं | इसका परिणाम यह होगा कि जहां कमजोर विद्यार्थी के प्रदर्शन में सुधार आयेगा वहीं पढ़ाने से न केवल मेधावी विद्यार्थी की नेतृत्व क्षमता , अभिव्यक्ति क्षमता विकसित होगी , उसके खाली समय का सदुपयोग होगा बल्कि पढ़ाने के कारण उसका अधिगम पुनर्बलित होकर पुष्ट होगा | उसके पढे का बार-बार पुनरावर्तन होता जाएगा | और सबसे बड़ी बात अपने सहपाठियों को पढ़ाने से सहपाठियों से उसके संबंध मधुर व आत्मीय बनेंगे |

3-    मेधावी विद्यार्थियों को पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त संदर्भ पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए उन्हें इन संदर्भ पुस्तकों की समीक्षा लिखने , नोट्स बनाने का काम भी दिया जाना चाहिए |

4-    मेधावी विद्यार्थी जिस कक्षा में हैं उससे अगली कक्षा की पुस्तकों को पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए तथा अगली कक्षा के प्रश्न-पत्रों को हल करने के लिए देना चाहिए इससे न केवल वे इंगेज रहेंगे बल्कि उनका बौद्धिक विकास होगा |

5-    कक्षा में होने वाली रचनात्मक गतिविधियों यथा वाद-विवाद , बहस , परिचर्चा व विभिन्न प्रतियोगिताओं में उन्हें भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए |

 

गतिविधि आधारित शिक्षण

 

गतिविधि आधारित शिक्षण

(Activity based teaching)

गतिविधि का अर्थ है किसी विशेष प्रकार के कार्य या व्यवहार के लिए सक्रिय होना | गतिविधि आधारित शिक्षण का आशय है एक ऐसी व्यावहारिक व बेहतर शिक्षण पद्धति जिसमें विद्यार्थी को किताबी ज्ञान की बजाए व्यावहारिक रूप से सीखने के लिए प्रेरित किया जाये | इसे और स्पष्ट किया जाये तो कह सकते हैं कि इस शिक्षण-पद्धति में पाठ्य सामग्री को रटने की बजाए गतिविधियों के माध्यम से सीखने और याद करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाता है | इसे और स्पष्ट किया जाये तो कह सकते हैं कि यह पद्धति विद्यार्थी को निष्क्रिय श्रोता की बजाए शिक्षण-प्रक्रिया में भागीदार बनाती है | अध्यापक के व्याख्यानों को निष्क्रिय रूप सुनने की पारंपरिक पद्धति के विपरीत यह विद्यार्थियों को किसी कार्य में सक्रिय रूप से भाग लेने के मौके देती है | यह एक ऐसी विधि है जो विद्यार्थियों को खेल , विचार-मंथन,चर्चा , वाद-विवाद,समूह-कार्य आदि अन्य कई गतिविधियों के माध्यम से शिक्षण-प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाती है और उनके ज्ञान व कौशल का विकास करती है |

गतिविधि आधारित शिक्षण में अध्यापक की भूमिका :- गतिविधि आधारित शिक्षण में सक्रिय भूमिका विद्यार्थी की होती है | अध्यापक को सिर्फ योजना बनाने , उस योजना के आयोजन की व्यवस्था करने तथा विद्यार्थियों की भागीदारी के उपरांत मूल्यांकनकर्ता की भूमिका निभानी होती है | इसका आशय यह बिलकुल नहीं है कि अध्यापक की भूमिका नगण्य हो जाती है | अध्यापक विद्यार्थियों को खुद करके सीखने के लिए प्रेरक के रूप में तो होता ही है साथ ही सुविधा प्रदाता भी होता है | विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से खुद करके सीखने के लिए जिन उपकरणों , औजारों , यंत्रों या संसाधनों की आवश्यकता विद्यार्थियों को होती , अध्यापक उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं |

गतिविधि आधारित शिक्षण से लाभ :- गतिविधि आधारित शिक्षण से विद्यार्थियों को निम्नलिखित लाभ होता है –

1-  विद्यार्थी जब करके सीखता है तो उसके नादार स्वतंत्र रूप से सीखने की आदत विकसित होती है | सीखने के लिए शिक्षक पर उसकी निर्भरता कम होती है |

2-  विद्यार्थी की सामाजिकता का विस्तार होता है | जब वह किसी परियोजना , प्रोजेक्ट के लिए काम करता है तो समूह में काम करने के कारण , अन्य लोगो का सहयोग लेने के कारण उसके अंदर समाजिकता का विकास होता है इसके साथ ही अपने अन्य सहपाठियों के साथ मिलकर किसी एक्टिविटी को पूरा करने में अपने सहपाठियों व अन्य सहयोगियों के साथ उसकी आत्मीयता विकसित होती है | व भावनात्मक रूप से भी समृद्ध होता है |

3-  गतिविधियों के माध्यम से सीखने पर विषयवस्तु पूरी तरह समझ में आ जाती है और सीखा हुआ स्मृति पटल पर स्थायी हो जाता है | विद्यार्थी सीखे हुये को फिर भूलता नहीं , उसकी स्मृति का विस्तार होता है |

4-  खुद करके सीखने से विद्यार्थी की दक्षताओं (ability) और कौशल (skill) का विकास होता है | विषय ज्ञान के अतिरिक्त उसमें अन्य कौशल भी विकसित हो जाते हैं |

5-  विद्यार्थी जब किसी काम को करता है , उसमें सफलता हासिल करता है | तो उसके अधिगम के साथ-साथ उसका आत्म-विश्वास बढ़ता है |

6-  विद्यार्थी को जब लगाने लगता है कि सीखना उसके लिए कठिन नहीं है तो उसे आंतरिक प्रोत्साहन मिलता है और वो इसी तरह आगे भी सीखते रहने के लिए प्रेरित होता है |

7-  करके सीखने से विद्यार्थी को अनुभव प्राप्त होता है |

8-  पारंपरिक व्याख्यान शैली के शिक्षण की बोरियत से विद्यार्थी को मुक्ति मिलती है | विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ उसके लिए खेल की तरह होती हैं जो सीखने के साथ-साथ उसका मनोरंजन भी करती हैं | इस कारण पढ़ाई में विद्यार्थी की रुचि जागृत होती है |

9-  बहस , वाद-विवाद , परिचर्चा , भाषण , नाटक , काव्य-पाठ , समूह-चर्चा आदि तमाम ऐसी गतिविधियाँ हैं जो विषयगत ज्ञान देने के अलावा विद्यार्थी की अभिव्यक्ति क्षमता में सुधार करती हैं | विद्यार्थी के शब्द-भण्डार में वृद्धि होती है |

गतिविधियों के प्रकार :-  यूँ अलग-अलग विषय के अनुसार गतिविधियों की प्रकृति अलग-अलग होगी | इसके अलावा किसी पाठ के लिए गतिविधि आयोजित करने में शिक्षक की अपनी कल्पना और रचनात्मकता की भी बड़ी भूमिका है | विषयवस्तु के आधार पर कुछ शिक्षक पारंपरिक , पूर्व-प्रचलित गतिविधियाँ कराते हैं तो कई उत्साही , कल्पनाशील शिक्षक स्वयं नवाचार करते हैं | कई बार यह भी होता है कुछ अति उत्साही शिक्षक क्रिया-कलाप के नाम पर ऐसी-ऐसी गतिविधियाँ आयोजित कराते हैं जो सिर्फ़ हास्यास्पद और फूहड़ बनकर रह जाती हैं जिससे कोई विशेष लाभ विद्यार्थियों को नहीं मिलता | इसलिए खूब सोच विचारकर ऐसी गतिविधि सम्पन्न करानी चाहिए जो विषयवस्तु से सम्बद्ध हो , जिसको करते हुये विद्यार्थी विषयवस्तु पर चिंतन-मनन करे और किसी निष्कर्ष तक पहुंचे | सामान्य तौर पर पाठ की आवश्यकतानुसार निम्नलिखित गतिविधियाँ कराई जा सकती हैं –

1-  शारीरिक गतिविधियाँ – इसके अंतर्गत विभिन्न तरह के खेल आयोजित किए जा सकते हैं |

2-  मानसिक गतिविधियाँ – इसके अंतर्गत पहेली , समस्यापूर्ति , प्रश्नोत्तरी तथा अन्य कई मानसिक सक्रियता वाले खेल आयोजित किए जा सकते हैं  |

3-  सामाजिक गतिविधियाँ – पर्यटन , पिकनिक , भाषण , वाद-विवाद , बहस , समूह-चर्चा , काव्य-पाठ , सर्वेक्षण, बागवानी आदि कई गतिविधियाँ इस श्रेणी के अंतर्गत राखी जा सकती हैं |

4-  कला एवं शिल्प – मूर्तिकला , चित्रकला , नक्शा बनाना , ग्राफिक्स , रेखाचित्र , कार्टोग्राफ , काश्तकारी , कशीदाकारी , नृत्य , गायन जैसी तमाम गतिविधियाँ इस श्रेणी के अंतर्गत आएंगी |

5-  नाटकीय गतिविधियाँ – नाटक , एकाँकी , स्वकथन , किस्सागोई आदि गतिविधियाँ इस श्रेणी में सम्मिलित की जा सकती हैं |

उपरोक्त वर्गीकरण व बताई गई गतिविधियाँ ही अंतिम नहीं हैं | इन्हें सिर्फ उदाहरण के तौर पर यहाँ बताया गया है | जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है यह शिक्षक की कल्पनाशीलता और रचनात्मकता पर निर्भर करता है  कि वह किस प्रकार विषय की ज़रूरत के अनुसार नवाचार करता है | निष्कर्षतः  इतना तो सिद्ध है कि गतिविधि आधारित शिक्षा आज के समय की मांग है |

 

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2023

कविता :
डा. दिनेश त्रिपाठी शम्स
साजिश  
मेरी हत्या हो गयी
हां यह मैं कह रहा हूं
कि मेरी ह्त्या  हो गयी है
यह मैं पूरे यकीन
और तथ्यों के आधार पर कह रह हूं
कि मारा गया है मुझे
बेहद निर्ममता से
तिल-तिल कर तड्पाया गया है मुझॆ
मैं गवाह हूं अपनी हत्या का
और कहीं भी , किसी को भी
हाजिर नाजिर मानकर
दे सकता हूं गवाही
मगर मैं चुप हूं
क्योंकि मैं जानता हूं
कि हत्यारे के साथ-साथ
वे सब भी अपराधी हैं
जिन्होने प्रत्यक्ष  या परोक्ष  
साथ दिया है इस कॄत्य का
और अब मुझॆ य़ॆ स्वीकार करते हुये
बेहद अफ़सोस हो रहा है
कि मैं खुद शामिल था
अपनी ही हत्या की साजिश में .
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131

कवितायें  :
डा. दिनेश त्रिपाठी शम्स
समायोजन
उन्होंने भ्रष्ट व्यवस्था के विरुद्ध
ऊंची आवाज में नारे लगाये ,
सभायें की , भाषण दिये
व्यवस्था को बदल डालने का आह्वान किया
लोगों में उनकी छवि बनी
वे पसन्द किये जाने लगे
उनका संघर्ष लगातार चलता रहaaak
जब-तक वे खुद
उस व्यवस्था में
समायोजित नहीं कर लिये गये
अब उनकी कमान किसी और ने संभाल ली है
+++++
कैक्टस
जिन्दगी के गांव में
उग आये हैं
कैक्टस बहुत सारे
पर नहीं है समय कि             
देखे कोई , समझे कोई
या करे कोशिश समझने की
कि नहीं है आदमी पत्थर
या हमारी चेतना
नहीं है बंजर
कैक्टस शॊभा हमारे ड्राईंगरूमों की,
कृतिम  उद्यानों की
पर नहीं बन सकता कभी
श्रुंगार हमारी चेतना ,
संवेदना का
अफ़सोस ! यही तो हो रहा है.


                                                              डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
कवितायें  :
डा. दिनेश त्रिपाठी शम्स
सापेक्षता
सापेक्षता के सापेक्ष
निरपेक्षता आकर्षक है,
सम्मोहक है
और आसान भी है निरपेक्ष होना
नहीं जुडी है क्योंकि इसके साथ
सरोकार की कोई बोझिल शर्त
संपृक्तता का बोझ लादकर चलना
आसान काम नहीं है
हर ठोकर पर गिरने का डर बना ही रहता है
संवेदना की कीमत पर मिलती है सापेक्षता .
पर कौन है जो चुकाये इतनी बडी कीमत
इसलिये आसान है निरपेक्ष होना .
++++++++
प्यार का सूत्र
प्यार में प्यार जोड़ो ,
प्यार में प्यार घटाओ ,
प्यार का प्यार से गुणा करो ,
या फिर प्यार को प्यार से भाग दे दो .
हर बार बचता सिर्फ प्यार ही है .
प्यार के गणित का आखिर ये कौन – सा सूत्र है ?
क्या आप जानते हैं ?
++++++++
                                           
                                           
                                            डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com
गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

विष बुझी जब-जब हवायें चल पड़ीं ,
डाल से गिरने लगीं तब पत्तियां .
           खूंटियों पर स्वार्थ के लटकी हुई ,
           छ्द्मवेशी आस्थायें डोलतीं हैं .
           लाभ हो या हानि लेकिन तुला पर ,
           स्वयं को संवेदनायें तोलतीं हैं .
है समय के कक्ष में फिर से घुटन ,
बन्द सारे द्वार सारे खिड़कियां
           है यहां कुछ शेष पैनापन अभी ,
           सृजन की मिटती-मिटाती धार में .
           दर्द की स्मारिकायें छाप कर ,
           बेचते हैं लोग अब बाज़ार में .
खूबसूरत जिल्द से भीतर छपी ,
अर्थ अपना पूछ्ती हैं पंकितयां .
            सांस लेकर कैक्टस की छांव में ,
            ज़िन्दगी अब प्रगतिवादी हो गयी है .
            किन्तु सूनापन अखरता है बहुत ,
            जैसे कोई चीज़ अपनी खो गयी है .
बिन पढ़े ही देखिए फेंकी गयीं ,
डस्टबिन में प्यार की सब चिट्ठियां .
               
                                            डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com
गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’


मुट्ठी से फिसला समय ,
मौसम ने बदली है चाल .
          हर दिन ने लिखी जो कथा ,
          रात उसे बाँचती रही .
          नयनों के रंगमंच पर ,
          बस पीड़ा नाचती रही .
हर संध्या छोड़ गयी है ,
अनसुलझे अनगिनत सवाल .
          आशाएं बाँझ हो गयीं ,
          उतर गया जो भी था ज्वार .
          जीवन की भाग-दौड़ में ,
          कौन करे सोलह सिंगार .
दुनिया के दाँव-पेंच ने ,
कुतर दिए सपनों के जाल





डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com

गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है .
          कितना बहा आँख का पानी मत पूछो .
          विगत वर्ष की राम कहानी मत पूछो .
          किसके सपने टूटे अपने रूठे क्यों ,
          किसकी बूढ़ी हुयी जवानी मत पूछो .
 जो कुछ बीता भूलें हम तुम दोनों ही ,
बांटो आकर हर्ष तुम्हारा स्वागत है .
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है
          नहीं रुका है समय कभी वह सिर्फ चले .
          बदल-बदल कर रूप छला है और छले .
          उसी समय के नए रूप तुम भी तो हो ,
          जिसमें सृष्टि पली है जिसमें प्रलय पले.
तुम हो जीवन मृत्यु तुम्हीं उत्थान-पतन ,
तुम्हीं शान्ति-संघर्ष तुम्हारा स्वागत है .
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है .
          यह तो मनुज स्वभाव तृप्ति से दूर रहा .
          तुम आये तो वही पुरातन प्यास जगी .
          कुछ खट्टा कुछ मीठा होता है जीवन में ,
          तुम केवल मीठे होगे ये आस जगी .
इसी आस को नव गति दो नव संबल दो ,
हो सबका उत्कर्ष तुम्हारा स्वागत है .
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है .



डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com
गीत :
डॉ. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
टुकड़ा भर व्योम चाहिए ,
मुट्ठी भर धूप के लिए .
आलम्बन ढूंढती रही ,
एकाकी ज़िंदगी यहाँ .
यौवन के सभी प्रश्न पर ,
संयम का मुँह धुँआ-धुँआ .
प्यार की फुहार चाहिए ,
कुम्हलाये रूप के लिए .
साँस-साँस लग रही है अब ,
दंश चिर अतृप्त प्यास का ,
स्वप्न जो उधार ले गए ,
दे न सके ब्याज आस का .
भावना का नीर चाहिए ,
सूख चुके कूप के लिए .
अनुभव के घर में हुआ ,
अनचाही पीर का निवास ,
और जाने कब बन गई ,
अन्तरंग, अतिघनिष्ठ ,खास .
दृष्टि में सुधार चाहिए ,
हर इक विद्रूप के लिए .












गीत :
जबसे तुमको देखा तबसे ,
कविता करना भूल गया मैं .
उपमा से तुम परे तुम्हारी ,
क्या दूँ मैं उपमा .
शब्द नहीं तारीफ़ करूँ कुछ ,
करना मुझे क्षमा .
दृग की भाषा पढ़ शब्दों की
भाषा पढ़ना भूल गया मैं .
दृष्टि कहीं भी डाली तो बस ,
तेरा रूप दिखा .
जब-जब कलम उठाया मैंने ,
तेरा नाम लिखा .
ढाई आखर गढ़कर बाकी ,
सब कुछ गढ़ना भूल गया मैं .
तुमको चाहूँ तुमको पाऊं ,
चाह रही मन में .
तुम मधुऋतु बनकर आ जाओ ,
मेरे आँगन में .
लेकिन भेंट हुई तो मन की ,
बातें कहना भूल गया मैं .

















अभिलाषाएं
निकालते हुए कभी-कभी
गूढ़ अर्थ डूब जाने वाले
उन विचारों का
जो बने हैं पीड़ा और
ज़ख्मों के स्थायी मिलन से
मिल जाती है इससे
अनुभूति को अभिव्यक्ति
ले जाने के ले
आंसुओं के उस संसार में
जहां टूटती रहती हैं
अभिलाषाएँ
ये अभिव्यक्ति उदास करती है
उस ह्रदय को
जो पला-बढ़ा है
इन्हीं अभिलाषाओं की गोद में



















कब तक बनोगी तुम
अहिल्या
कि जब चाहे कोई गौतम
बना दे तुम्हें पत्थर
कब तक बनोगी तुम सीता
कि जब चाहे कोई मर्यादा परुषोत्तम 
भेज दे तुम्हें वन पथ पर
जानती हो आज के युग में
नहीं मिलेगा तुम्हें कोई राम और वाल्मीकि
अगर तुम चाहती हो कि
पा सको अपनी गरिमा
तो अब खुद जगाना होगा
तुम्हें अपने सामर्थ्य को
























ज़िंदगी के गाँव में अब ,
बढ़ गयी कितनी घुटन है .
 है व्यथा का कर्ज इतना ,
साँस तक गिरवी पड़ी है .
त्रासदी सबके लिए अब ,
एक सुरसा-सी खड़ी है .
यक्ष-प्रश्नों की तरह अब ,
हो गया जीवन-मरण है .
भोगता संत्रास आँखों
में सुनहरे स्वप्न लेकर .
पूर्ण आशा हो न पायी ,
बन्धु सारी उम्र देकर .
आदमी के वास्ते
जैसे गरल का आचमन है .





















फूल भी अब लग रहे हैं खार ,
शीत की कुछ यूँ पड़ी है मार .
दिन हुए बौने बहुत अब प्यार के ,
नफरतों की रात लम्बी हो गई .
हर तरफ़ कुहरा घना छाया हुआ ,
रोशनी जैसे तिमिर में खो गई .
जिन्दगी को बन्द कमरे में ,
धूप की सम्वेदना से प्यार .
चेतना की देह में ठिठुरन बढ़ी ,
जब सृजन की आग ठण्डी पड़ गई .
फिर तमाचा आदमी के गाल पर ,
स्वार्थ की पछुआ हवा है जड़ गई .
आज के काँपते हाथ पर ,
बन्धु कल के आगमन का भार .
आस्था का शाल चिथड़ा हो गया ,
फट गया स्वेटर सहज विश्वास का .
जब पहन करके इसे निकला समय .
सिर्फ कारण ही बना उपहास का .
अब तो बस है शेष नंगापन ,
हम जिसे ही मान लें अधिकार .













खत्म समिधा हुई सब हवन के लिए ,
देवता रुष्ट हैं स्तवन के लिए .
सिन्धु मन्थन से निकले रतन तो  मगर .
लोग संतुष्टि  से ही रहे बेखबर .
सुर-असुर, स्वार्थ-परमार्थ का ये समर .
चाहते सब सुधा पी के होना अमर .
साथ अमृत के निकला गरल क्या करें ,
कोई भी शिव नहीं आचमन के लिए .
अश्रु ही पीर के मात्र उपचार हैं .
अश्रु ही नैन के श्रेष्ठ श्रृंगार हैं .
अश्रु ही दोस्त आनन्द आधार हैं .
आँसुओं के बिना जन्म बेकार है .
अश्रु इतना बहे प्राण पथरा गए ,
अश्रु लाएँ कहाँ से नयन के लिए .
अपनी संस्कृति का होने लगा है क्षरण .
भर गया है प्रदूषण से वातावरण .
खुश हुए ओढ़कर पश्चिमी आवरण .
ताल सुर राग लय सब हुए संस्मरण .
क्या है अनहद किसी को पता भी नहीं ,
भाव भी शून्य लगते भजन के लिए .














जिन्दगी अब हाशिए पर आ गई है .
शब्द सारे खो चुके हैं अर्थ अपना .
सत्य का आभास केवल एक सपना .
सार्थकता सृष्टि की होगी भला क्या ,
दूर जब औचित्य से हर एक रचना .
सृजन की सम्वेदना घबरा गई है .
लड़ रही है भावना खुद से निरन्तर .
बढ़ गया है बुद्धि-मन के बीच अन्तर .
लग गए सन्दर्भ रिश्तों के बदलने ,
शून्य भर ही रह गया विश्वास घटकर .
हर जगह पर त्रासदी ही छा गई है .
पीर की अनुभूति को ढोने लगे हैं .
याचना के स्वर मुखर होने लगे हैं .
फूल का अस्तित्व संकट में पड़ा है ,
शूल केवल सबके सब बोने लगे हैं .
नेह सिंचित  हर लता मुरझा गई है .




















नौ दो ग्यारह , दो-दो चार ,
आदर्शों को ठोकर मार .
          गम हो लेकिन आह न कर .
          अपनेपन की चाह न कर .
          केवल अपनी तान सूना ,
          दुनिया की परवाह न कर .
मक्कारों की इस दुनिया में ,
तू भी अब हो जा मक्कार .
          कैसा न्याय कहाँ की यारी .
          लाठी है तो भैंस तुम्हारी .
          लूट रहे है सभी यहाँ पर ,
          लूट मची है , लूटो भारी .
सच की कोई पूछ नहीं है ,
करो झूठ का अब व्यापार .
          जिससे मिल बस हंसकर मिल .
          हाथ मिला पर मिला न दिल .
          धमा-चौकड़ी खूब मचा ,
          जमी रहे तेरी महफ़िल .
दुनिया की तू हँसी उड़ा ,
रोना-गाना है बेकार .













प्यार और कुछ नहीं ,
मौका है ठिकाना है .
भटकन के बीच कहीं ,
ठहर-ठहर जाना है .
नींद की प्रतीक्षा में ,
जागता बिछौना है .
प्यार वर्जनाओं में ,
उन्मुक्त होना  है .
बिना मोल देना है ,
बिना मोल पाना है .
याचना के हाथों में ,
प्यार एक खजाना है .
कहना है सुनना है ,
दिल को समझाना है .
खुद को भूल जाने का ,
प्यार एक बहाना है .



















अच्छा नहीं है
बुद्धिहीन होना
बुद्धिहीन होकर जीना भी
क्या जीना
अच्छा नहीं है
कि लोग सरे आम कह दें
जाहिल और गँवार
बुद्धिहीन होना हमारे लिए तो
नुकसानदेह है ही
कुछ हद तक दूसरों के लिए भी .
पर बिलकुल ही अच्छी नहीं है
सम्वेदंनशून्य बुद्धिमानी
बल्कि बहुत ही खतरनाक है
मर जाना एक बुद्धिमान की
आँखों का पानी
ऐसी बुद्धिमानी जो
सूखकर खंखड हो चुकी है
भावाद्र्ता के अभाव में
ख़तरा बन सकती है
हम सब के लिए
पूरी इंसानियत के लिए
रिश्तों के लिए
मर्यादाओं के लिए
हाँ , अच्छा तो नहीं है बुद्धिहीन होना
पर देखकर कुछ बुद्धिमानों को
अच्छी लगने लगती है बुद्धिहीनता .





पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए
पुस्तकें नहीं हैं
जीवन्त इतिहास ,
संभावनाशील भविष्य
व संघर्षरत वर्तमान
पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए
पुस्तकें नहीं हैं
अनुभव का यथार्थ
सम्वेदना का कोश
स्वयं का प्रतिबिम्ब
पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए
पुस्तकें नहीं हैं
सच्ची दोस्त
और प्रेरक
सृजन के पथ की
पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए तो
पुस्तकें हैं बस स्टॉक
कन्ज्युमेबल या नॉन कन्ज्युमेबल
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ताजमहल
धवल चांदनी यहाँ कि जैसे उतर आई हो धरती पर ,
और सौंदर्य की प्रतिमा शाश्वत ज्यों साकार हुई हो .
देवों का सारा ही वैभव यहाँ हुआ नतमस्तक है ,
अनुपम इसके आगे जैसे उपमानों की हार हुई हो .
यमुना के बहते जल में जब ताजमहल की छवि पड़ती है ,
लगता है कि दुग्ध-धवल –सी कोई अप्सरा नहां रही हो .
आकर्षण का एक जाल जो अपने चारों ओर बुन रही ,
सम्मोहन में बाँध-बाँध कर ह्रदय-ह्रदय को बुला रही हो .
प्रिया-वियोग से पीड़ित होकर भग्न ह्रदय राजा ने ,
संगेमरमर पर लिखवाई अपनी प्रेम-कहानी .
शाहजहाँ की ह्रदय-स्वामिनी लीन यहाँ चिर-निद्रा में ,
कहते हैं की ताजमहल है अमर प्रेम की अमर निशानी .
ताजमहल के पाहन में मुमताज महल की यादें हैं ,
ताजमहल के पाहन में तो शाहजहाँ का प्यार बसा है .
और कहा जाता है यह भी ताजमहल बनवा करके ,
शाहजहाँ ने प्यार शब्द को रूप दिया है , अर्थ दिया है .
किन्तु प्यार तो अंतरतम के गहन –लोक में बसता है ,
स्मृतियाँ भी सदा बसा करती हैं मन-आँगन में ,
भला प्यार का जड़ता से क्या नाता हो सकता है ,
प्यार चेतना का आधार रहा सदा जीवन में .
पाहन में प्यार बसाने वाले मूर्ख हुआ करते हैं ,
शाहजहाँ भी मूर्ख कि जिसने पाहन में प्यार बसाया है .
कौन भला कहता कि उसने हँसी उड़ाई रंकों की ,
सच तो यह है उसने खुद अपना मजाक उड़ाया है .
एक बादशाह जो शोषक था समता का प्रबल विरोधी ,
यह ताजमहल उस शोषण की अब भी दे रहा गवाही है .
भले राष्ट्र की शान बना यह वर्षों बाद भी चमक रहा है ,
लेकिन इसके उजलेपन के पीछे सिर्फ सियाही है .

कवितायें :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

वर्जित फल
मैं जानता हूँ
बहिष्कृत हो जाऊँगा
चेतना के स्वर्ग
पर क्या करूँ इस प्रेम का
मैं आदम हूँ
पाना चाहता हूँ तुम्हें
वर्जित फल की तरह
++++++++


पीड़ा की नदी
पीड़ा की नदी
दिल के पर्वत से निकलकर
आँखों के समंदर
से जा मिली
और खारी हो गई .



डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com
तुझ पर अब विश्वास नहीं है .
कहते हैं तू दीनबंधु है तू है दयानिधान ,
करूणानिधि तू दयासिन्धु तू  भक्तों का भगवान .
ये जो तुझको मिले विशेषण ,मेरे लिए व्यर्थ हैं सारे .
सुनने से क्या होता है जब अनुभव से अनजान .
या फिर मेरी पीड़ा का
अभी तुझे आभास नहीं है .
मेरी प्यास बुझा न पाये सबकी प्यास बुझाने वाले ,
मुझसे प्रीत निभा न पाये सबसे प्रीत निभाने वाले .
तू प्रियतम है फिर प्रियतम सा नेह कहाँ है तेरे भीतर ,
मेरा प्रश्न प्रश्न है अब तक प्रश्नों को सुलझाने वाले .
मेरी इस दुविधा का उत्तर ,
शायद तेरे पास नहीं है .



दीप हूँ जलता रहूंगा ,
तिमिर से लड़ता रहूंगा |
                अश्रुपूरित नयन हर तरफ ,
                और खंडित हैं मन हर तरफ |
                राह अब कोई दिखती नहीं ,
                है निराशा सघन हर तरफ |
आस का सम्बल लिए मैं ,
रात भर चलता रहूँगा |
दीप हूँ जलता रहूंगाकविता :
डा. दिनेश त्रिपाठी शम्स
साजिश  
मेरी हत्या हो गयी
हां यह मैं कह रहा हूं
कि मेरी ह्त्या  हो गयी है
यह मैं पूरे यकीन
और तथ्यों के आधार पर कह रह हूं
कि मारा गया है मुझे
बेहद निर्ममता से
तिल-तिल कर तड्पाया गया है मुझॆ
मैं गवाह हूं अपनी हत्या का
और कहीं भी , किसी को भी
हाजिर नाजिर मानकर
दे सकता हूं गवाही
मगर मैं चुप हूं
क्योंकि मैं जानता हूं
कि हत्यारे के साथ-साथ
वे सब भी अपराधी हैं
जिन्होने प्रत्यक्ष  या परोक्ष  
साथ दिया है इस कॄत्य का
और अब मुझॆ य़ॆ स्वीकार करते हुये
बेहद अफ़सोस हो रहा है
कि मैं खुद शामिल था
अपनी ही हत्या की साजिश में .
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131

कवितायें  :
डा. दिनेश त्रिपाठी शम्स
समायोजन
उन्होंने भ्रष्ट व्यवस्था के विरुद्ध
ऊंची आवाज में नारे लगाये ,
सभायें की , भाषण दिये
व्यवस्था को बदल डालने का आह्वान किया
लोगों में उनकी छवि बनी
वे पसन्द किये जाने लगे
उनका संघर्ष लगातार चलता रहaaak
जब-तक वे खुद
उस व्यवस्था में
समायोजित नहीं कर लिये गये
अब उनकी कमान किसी और ने संभाल ली है
+++++
कैक्टस
जिन्दगी के गांव में
उग आये हैं
कैक्टस बहुत सारे
पर नहीं है समय कि             
देखे कोई , समझे कोई
या करे कोशिश समझने की
कि नहीं है आदमी पत्थर
या हमारी चेतना
नहीं है बंजर
कैक्टस शॊभा हमारे ड्राईंगरूमों की,
कृतिम  उद्यानों की
पर नहीं बन सकता कभी
श्रुंगार हमारी चेतना ,
संवेदना का
अफ़सोस ! यही तो हो रहा है.


                                                              डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
कवितायें  :
डा. दिनेश त्रिपाठी शम्स
सापेक्षता
सापेक्षता के सापेक्ष
निरपेक्षता आकर्षक है,
सम्मोहक है
और आसान भी है निरपेक्ष होना
नहीं जुडी है क्योंकि इसके साथ
सरोकार की कोई बोझिल शर्त
संपृक्तता का बोझ लादकर चलना
आसान काम नहीं है
हर ठोकर पर गिरने का डर बना ही रहता है
संवेदना की कीमत पर मिलती है सापेक्षता .
पर कौन है जो चुकाये इतनी बडी कीमत
इसलिये आसान है निरपेक्ष होना .
++++++++
प्यार का सूत्र
प्यार में प्यार जोड़ो ,
प्यार में प्यार घटाओ ,
प्यार का प्यार से गुणा करो ,
या फिर प्यार को प्यार से भाग दे दो .
हर बार बचता सिर्फ प्यार ही है .
प्यार के गणित का आखिर ये कौन – सा सूत्र है ?
क्या आप जानते हैं ?
++++++++
                                           
                                           
                                            डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com
गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

विष बुझी जब-जब हवायें चल पड़ीं ,
डाल से गिरने लगीं तब पत्तियां .
           खूंटियों पर स्वार्थ के लटकी हुई ,
           छ्द्मवेशी आस्थायें डोलतीं हैं .
           लाभ हो या हानि लेकिन तुला पर ,
           स्वयं को संवेदनायें तोलतीं हैं .
है समय के कक्ष में फिर से घुटन ,
बन्द सारे द्वार सारे खिड़कियां
           है यहां कुछ शेष पैनापन अभी ,
           सृजन की मिटती-मिटाती धार में .
           दर्द की स्मारिकायें छाप कर ,
           बेचते हैं लोग अब बाज़ार में .
खूबसूरत जिल्द से भीतर छपी ,
अर्थ अपना पूछ्ती हैं पंकितयां .
            सांस लेकर कैक्टस की छांव में ,
            ज़िन्दगी अब प्रगतिवादी हो गयी है .
            किन्तु सूनापन अखरता है बहुत ,
            जैसे कोई चीज़ अपनी खो गयी है .
बिन पढ़े ही देखिए फेंकी गयीं ,
डस्टबिन में प्यार की सब चिट्ठियां .
               
                                            डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
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गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’


मुट्ठी से फिसला समय ,
मौसम ने बदली है चाल .
          हर दिन ने लिखी जो कथा ,
          रात उसे बाँचती रही .
          नयनों के रंगमंच पर ,
          बस पीड़ा नाचती रही .
हर संध्या छोड़ गयी है ,
अनसुलझे अनगिनत सवाल .
          आशाएं बाँझ हो गयीं ,
          उतर गया जो भी था ज्वार .
          जीवन की भाग-दौड़ में ,
          कौन करे सोलह सिंगार .
दुनिया के दाँव-पेंच ने ,
कुतर दिए सपनों के जाल





डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
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गीत :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है .
          कितना बहा आँख का पानी मत पूछो .
          विगत वर्ष की राम कहानी मत पूछो .
          किसके सपने टूटे अपने रूठे क्यों ,
          किसकी बूढ़ी हुयी जवानी मत पूछो .
 जो कुछ बीता भूलें हम तुम दोनों ही ,
बांटो आकर हर्ष तुम्हारा स्वागत है .
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है
          नहीं रुका है समय कभी वह सिर्फ चले .
          बदल-बदल कर रूप छला है और छले .
          उसी समय के नए रूप तुम भी तो हो ,
          जिसमें सृष्टि पली है जिसमें प्रलय पले.
तुम हो जीवन मृत्यु तुम्हीं उत्थान-पतन ,
तुम्हीं शान्ति-संघर्ष तुम्हारा स्वागत है .
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है .
          यह तो मनुज स्वभाव तृप्ति से दूर रहा .
          तुम आये तो वही पुरातन प्यास जगी .
          कुछ खट्टा कुछ मीठा होता है जीवन में ,
          तुम केवल मीठे होगे ये आस जगी .
इसी आस को नव गति दो नव संबल दो ,
हो सबका उत्कर्ष तुम्हारा स्वागत है .
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है .



डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
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गीत :
डॉ. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
टुकड़ा भर व्योम चाहिए ,
मुट्ठी भर धूप के लिए .
आलम्बन ढूंढती रही ,
एकाकी ज़िंदगी यहाँ .
यौवन के सभी प्रश्न पर ,
संयम का मुँह धुँआ-धुँआ .
प्यार की फुहार चाहिए ,
कुम्हलाये रूप के लिए .
साँस-साँस लग रही है अब ,
दंश चिर अतृप्त प्यास का ,
स्वप्न जो उधार ले गए ,
दे न सके ब्याज आस का .
भावना का नीर चाहिए ,
सूख चुके कूप के लिए .
अनुभव के घर में हुआ ,
अनचाही पीर का निवास ,
और जाने कब बन गई ,
अन्तरंग, अतिघनिष्ठ ,खास .
दृष्टि में सुधार चाहिए ,
हर इक विद्रूप के लिए .












गीत :
जबसे तुमको देखा तबसे ,
कविता करना भूल गया मैं .
उपमा से तुम परे तुम्हारी ,
क्या दूँ मैं उपमा .
शब्द नहीं तारीफ़ करूँ कुछ ,
करना मुझे क्षमा .
दृग की भाषा पढ़ शब्दों की
भाषा पढ़ना भूल गया मैं .
दृष्टि कहीं भी डाली तो बस ,
तेरा रूप दिखा .
जब-जब कलम उठाया मैंने ,
तेरा नाम लिखा .
ढाई आखर गढ़कर बाकी ,
सब कुछ गढ़ना भूल गया मैं .
तुमको चाहूँ तुमको पाऊं ,
चाह रही मन में .
तुम मधुऋतु बनकर आ जाओ ,
मेरे आँगन में .
लेकिन भेंट हुई तो मन की ,
बातें कहना भूल गया मैं .

















अभिलाषाएं
निकालते हुए कभी-कभी
गूढ़ अर्थ डूब जाने वाले
उन विचारों का
जो बने हैं पीड़ा और
ज़ख्मों के स्थायी मिलन से
मिल जाती है इससे
अनुभूति को अभिव्यक्ति
ले जाने के ले
आंसुओं के उस संसार में
जहां टूटती रहती हैं
अभिलाषाएँ
ये अभिव्यक्ति उदास करती है
उस ह्रदय को
जो पला-बढ़ा है
इन्हीं अभिलाषाओं की गोद में



















कब तक बनोगी तुम
अहिल्या
कि जब चाहे कोई गौतम
बना दे तुम्हें पत्थर
कब तक बनोगी तुम सीता
कि जब चाहे कोई मर्यादा परुषोत्तम 
भेज दे तुम्हें वन पथ पर
जानती हो आज के युग में
नहीं मिलेगा तुम्हें कोई राम और वाल्मीकि
अगर तुम चाहती हो कि
पा सको अपनी गरिमा
तो अब खुद जगाना होगा
तुम्हें अपने सामर्थ्य को
























ज़िंदगी के गाँव में अब ,
बढ़ गयी कितनी घुटन है .
 है व्यथा का कर्ज इतना ,
साँस तक गिरवी पड़ी है .
त्रासदी सबके लिए अब ,
एक सुरसा-सी खड़ी है .
यक्ष-प्रश्नों की तरह अब ,
हो गया जीवन-मरण है .
भोगता संत्रास आँखों
में सुनहरे स्वप्न लेकर .
पूर्ण आशा हो न पायी ,
बन्धु सारी उम्र देकर .
आदमी के वास्ते
जैसे गरल का आचमन है .





















फूल भी अब लग रहे हैं खार ,
शीत की कुछ यूँ पड़ी है मार .
दिन हुए बौने बहुत अब प्यार के ,
नफरतों की रात लम्बी हो गई .
हर तरफ़ कुहरा घना छाया हुआ ,
रोशनी जैसे तिमिर में खो गई .
जिन्दगी को बन्द कमरे में ,
धूप की सम्वेदना से प्यार .
चेतना की देह में ठिठुरन बढ़ी ,
जब सृजन की आग ठण्डी पड़ गई .
फिर तमाचा आदमी के गाल पर ,
स्वार्थ की पछुआ हवा है जड़ गई .
आज के काँपते हाथ पर ,
बन्धु कल के आगमन का भार .
आस्था का शाल चिथड़ा हो गया ,
फट गया स्वेटर सहज विश्वास का .
जब पहन करके इसे निकला समय .
सिर्फ कारण ही बना उपहास का .
अब तो बस है शेष नंगापन ,
हम जिसे ही मान लें अधिकार .













खत्म समिधा हुई सब हवन के लिए ,
देवता रुष्ट हैं स्तवन के लिए .
सिन्धु मन्थन से निकले रतन तो  मगर .
लोग संतुष्टि  से ही रहे बेखबर .
सुर-असुर, स्वार्थ-परमार्थ का ये समर .
चाहते सब सुधा पी के होना अमर .
साथ अमृत के निकला गरल क्या करें ,
कोई भी शिव नहीं आचमन के लिए .
अश्रु ही पीर के मात्र उपचार हैं .
अश्रु ही नैन के श्रेष्ठ श्रृंगार हैं .
अश्रु ही दोस्त आनन्द आधार हैं .
आँसुओं के बिना जन्म बेकार है .
अश्रु इतना बहे प्राण पथरा गए ,
अश्रु लाएँ कहाँ से नयन के लिए .
अपनी संस्कृति का होने लगा है क्षरण .
भर गया है प्रदूषण से वातावरण .
खुश हुए ओढ़कर पश्चिमी आवरण .
ताल सुर राग लय सब हुए संस्मरण .
क्या है अनहद किसी को पता भी नहीं ,
भाव भी शून्य लगते भजन के लिए .














जिन्दगी अब हाशिए पर आ गई है .
शब्द सारे खो चुके हैं अर्थ अपना .
सत्य का आभास केवल एक सपना .
सार्थकता सृष्टि की होगी भला क्या ,
दूर जब औचित्य से हर एक रचना .
सृजन की सम्वेदना घबरा गई है .
लड़ रही है भावना खुद से निरन्तर .
बढ़ गया है बुद्धि-मन के बीच अन्तर .
लग गए सन्दर्भ रिश्तों के बदलने ,
शून्य भर ही रह गया विश्वास घटकर .
हर जगह पर त्रासदी ही छा गई है .
पीर की अनुभूति को ढोने लगे हैं .
याचना के स्वर मुखर होने लगे हैं .
फूल का अस्तित्व संकट में पड़ा है ,
शूल केवल सबके सब बोने लगे हैं .
नेह सिंचित  हर लता मुरझा गई है .




















नौ दो ग्यारह , दो-दो चार ,
आदर्शों को ठोकर मार .
          गम हो लेकिन आह न कर .
          अपनेपन की चाह न कर .
          केवल अपनी तान सूना ,
          दुनिया की परवाह न कर .
मक्कारों की इस दुनिया में ,
तू भी अब हो जा मक्कार .
          कैसा न्याय कहाँ की यारी .
          लाठी है तो भैंस तुम्हारी .
          लूट रहे है सभी यहाँ पर ,
          लूट मची है , लूटो भारी .
सच की कोई पूछ नहीं है ,
करो झूठ का अब व्यापार .
          जिससे मिल बस हंसकर मिल .
          हाथ मिला पर मिला न दिल .
          धमा-चौकड़ी खूब मचा ,
          जमी रहे तेरी महफ़िल .
दुनिया की तू हँसी उड़ा ,
रोना-गाना है बेकार .













प्यार और कुछ नहीं ,
मौका है ठिकाना है .
भटकन के बीच कहीं ,
ठहर-ठहर जाना है .
नींद की प्रतीक्षा में ,
जागता बिछौना है .
प्यार वर्जनाओं में ,
उन्मुक्त होना  है .
बिना मोल देना है ,
बिना मोल पाना है .
याचना के हाथों में ,
प्यार एक खजाना है .
कहना है सुनना है ,
दिल को समझाना है .
खुद को भूल जाने का ,
प्यार एक बहाना है .



















अच्छा नहीं है
बुद्धिहीन होना
बुद्धिहीन होकर जीना भी
क्या जीना
अच्छा नहीं है
कि लोग सरे आम कह दें
जाहिल और गँवार
बुद्धिहीन होना हमारे लिए तो
नुकसानदेह है ही
कुछ हद तक दूसरों के लिए भी .
पर बिलकुल ही अच्छी नहीं है
सम्वेदंनशून्य बुद्धिमानी
बल्कि बहुत ही खतरनाक है
मर जाना एक बुद्धिमान की
आँखों का पानी
ऐसी बुद्धिमानी जो
सूखकर खंखड हो चुकी है
भावाद्र्ता के अभाव में
ख़तरा बन सकती है
हम सब के लिए
पूरी इंसानियत के लिए
रिश्तों के लिए
मर्यादाओं के लिए
हाँ , अच्छा तो नहीं है बुद्धिहीन होना
पर देखकर कुछ बुद्धिमानों को
अच्छी लगने लगती है बुद्धिहीनता .





पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए
पुस्तकें नहीं हैं
जीवन्त इतिहास ,
संभावनाशील भविष्य
व संघर्षरत वर्तमान
पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए
पुस्तकें नहीं हैं
अनुभव का यथार्थ
सम्वेदना का कोश
स्वयं का प्रतिबिम्ब
पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए
पुस्तकें नहीं हैं
सच्ची दोस्त
और प्रेरक
सृजन के पथ की
पुस्तकालयाध्यक्ष के लिए तो
पुस्तकें हैं बस स्टॉक
कन्ज्युमेबल या नॉन कन्ज्युमेबल
( रद्दी या उपयोगी )
स्टॉक रजिस्टर के पन्नों पर
की गई इंट्री के सिवा
पुस्तकालयाध्यक्ष नहीं पढ़ पाते
सम्वेदना व ज्ञान की कोई अन्य इबारत









ताजमहल
धवल चांदनी यहाँ कि जैसे उतर आई हो धरती पर ,
और सौंदर्य की प्रतिमा शाश्वत ज्यों साकार हुई हो .
देवों का सारा ही वैभव यहाँ हुआ नतमस्तक है ,
अनुपम इसके आगे जैसे उपमानों की हार हुई हो .
यमुना के बहते जल में जब ताजमहल की छवि पड़ती है ,
लगता है कि दुग्ध-धवल –सी कोई अप्सरा नहां रही हो .
आकर्षण का एक जाल जो अपने चारों ओर बुन रही ,
सम्मोहन में बाँध-बाँध कर ह्रदय-ह्रदय को बुला रही हो .
प्रिया-वियोग से पीड़ित होकर भग्न ह्रदय राजा ने ,
संगेमरमर पर लिखवाई अपनी प्रेम-कहानी .
शाहजहाँ की ह्रदय-स्वामिनी लीन यहाँ चिर-निद्रा में ,
कहते हैं की ताजमहल है अमर प्रेम की अमर निशानी .
ताजमहल के पाहन में मुमताज महल की यादें हैं ,
ताजमहल के पाहन में तो शाहजहाँ का प्यार बसा है .
और कहा जाता है यह भी ताजमहल बनवा करके ,
शाहजहाँ ने प्यार शब्द को रूप दिया है , अर्थ दिया है .
किन्तु प्यार तो अंतरतम के गहन –लोक में बसता है ,
स्मृतियाँ भी सदा बसा करती हैं मन-आँगन में ,
भला प्यार का जड़ता से क्या नाता हो सकता है ,
प्यार चेतना का आधार रहा सदा जीवन में .
पाहन में प्यार बसाने वाले मूर्ख हुआ करते हैं ,
शाहजहाँ भी मूर्ख कि जिसने पाहन में प्यार बसाया है .
कौन भला कहता कि उसने हँसी उड़ाई रंकों की ,
सच तो यह है उसने खुद अपना मजाक उड़ाया है .
एक बादशाह जो शोषक था समता का प्रबल विरोधी ,
यह ताजमहल उस शोषण की अब भी दे रहा गवाही है .
भले राष्ट्र की शान बना यह वर्षों बाद भी चमक रहा है ,
लेकिन इसके उजलेपन के पीछे सिर्फ सियाही है .

कवितायें :
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

वर्जित फल
मैं जानता हूँ
बहिष्कृत हो जाऊँगा
चेतना के स्वर्ग
पर क्या करूँ इस प्रेम का
मैं आदम हूँ
पाना चाहता हूँ तुम्हें
वर्जित फल की तरह
++++++++


पीड़ा की नदी
पीड़ा की नदी
दिल के पर्वत से निकलकर
आँखों के समंदर
से जा मिली
और खारी हो गई .



डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
                                                   इमेल-yogishams@yahoo.com
तुझ पर अब विश्वास नहीं है .
कहते हैं तू दीनबंधु है तू है दयानिधान ,
करूणानिधि तू दयासिन्धु तू  भक्तों का भगवान .
ये जो तुझको मिले विशेषण ,मेरे लिए व्यर्थ हैं सारे .
सुनने से क्या होता है जब अनुभव से अनजान .
या फिर मेरी पीड़ा का
अभी तुझे आभास नहीं है .
मेरी प्यास बुझा न पाये सबकी प्यास बुझाने वाले ,
मुझसे प्रीत निभा न पाये सबसे प्रीत निभाने वाले .
तू प्रियतम है फिर प्रियतम सा नेह कहाँ है तेरे भीतर ,
मेरा प्रश्न प्रश्न है अब तक प्रश्नों को सुलझाने वाले .
मेरी इस दुविधा का उत्तर ,
शायद तेरे पास नहीं है .



दीप हूँ जलता रहूंगा ,
तिमिर से लड़ता रहूंगा |
                अश्रुपूरित नयन हर तरफ ,
                और खंडित हैं मन हर तरफ |
                राह अब कोई दिखती नहीं ,
                है निराशा सघन हर तरफ |
आस का सम्बल लिए मैं ,
रात भर चलता रहूँगा |
दीप हूँ जलता रहूंगा ,
तिमिर से लड़ता रहूंगा |
                रोशनी की नहीं खान हूँ ,
                 दोस्तो मैं न दिनमान हूँ |
                मैं हूँ लघु पर निरर्थक नहीं ,
                डूबते को मैं जलयान हूँ |
अपनी सीमा भर उजाला ,
अंत तक करता रहूँगा |
दीप हूँ जलता रहूंगा ,
तिमिर से लड़ता रहूंगा |







नागसेन , पंचायत राज , अमर जगत , कहना मान , दस्तक , ऋषिभूमि , नागरी स्मारिका , सजल टाइम्स , ब्रज कुमुदेश , अवध अर्चना , निर्दलीय , अंचल भारती , ब्रम्ह्वचन , भावार्पण , प्रिय संपादक , शुभतारिका .,
तिमिर से लड़ता रहूंगा |
                रोशनी की नहीं खान हूँ ,
                 दोस्तो मैं न दिनमान हूँ |
                मैं हूँ लघु पर निरर्थक नहीं ,
                डूबते को मैं जलयान हूँ |
अपनी सीमा भर उजाला ,
अंत तक करता रहूँगा |
दीप हूँ जलता रहूंगा ,
तिमिर से लड़ता रहूंगा |








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