गतिविधि आधारित शिक्षण
(Activity based teaching)
गतिविधि का अर्थ है किसी विशेष प्रकार के कार्य या व्यवहार
के लिए सक्रिय होना | गतिविधि आधारित
शिक्षण का आशय है एक ऐसी व्यावहारिक व बेहतर शिक्षण पद्धति जिसमें विद्यार्थी को
किताबी ज्ञान की बजाए व्यावहारिक रूप से सीखने के लिए प्रेरित किया जाये | इसे और स्पष्ट किया जाये तो कह
सकते हैं कि इस शिक्षण-पद्धति में पाठ्य सामग्री को रटने की बजाए गतिविधियों के
माध्यम से सीखने और याद करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाता है | इसे और स्पष्ट किया जाये तो कह
सकते हैं कि यह पद्धति विद्यार्थी को निष्क्रिय श्रोता की बजाए शिक्षण-प्रक्रिया
में भागीदार बनाती है | अध्यापक के व्याख्यानों को निष्क्रिय रूप सुनने की पारंपरिक पद्धति के विपरीत
यह विद्यार्थियों को किसी कार्य में सक्रिय रूप से भाग लेने के मौके देती है | यह एक ऐसी विधि है जो
विद्यार्थियों को खेल , विचार-मंथन,चर्चा , वाद-विवाद,समूह-कार्य आदि अन्य कई गतिविधियों
के माध्यम से शिक्षण-प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाती है और उनके ज्ञान व कौशल
का विकास करती है |
गतिविधि आधारित शिक्षण में अध्यापक
की भूमिका :-
गतिविधि आधारित शिक्षण में सक्रिय भूमिका विद्यार्थी की होती है | अध्यापक को सिर्फ योजना बनाने , उस योजना के आयोजन की व्यवस्था
करने तथा विद्यार्थियों की भागीदारी के उपरांत मूल्यांकनकर्ता की भूमिका निभानी
होती है | इसका आशय यह बिलकुल नहीं है कि
अध्यापक की भूमिका नगण्य हो जाती है | अध्यापक विद्यार्थियों को खुद करके सीखने के लिए प्रेरक के रूप में तो होता
ही है साथ ही सुविधा प्रदाता भी होता है | विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से
खुद करके सीखने के लिए जिन उपकरणों , औजारों , यंत्रों या संसाधनों की आवश्यकता
विद्यार्थियों को होती , अध्यापक उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं |
गतिविधि आधारित शिक्षण से लाभ :- गतिविधि आधारित शिक्षण से
विद्यार्थियों को निम्नलिखित लाभ होता है –
1- विद्यार्थी जब करके सीखता है तो
उसके नादार स्वतंत्र रूप से सीखने की आदत विकसित होती है | सीखने के लिए शिक्षक पर उसकी
निर्भरता कम होती है |
2- विद्यार्थी की सामाजिकता का
विस्तार होता है | जब वह किसी
परियोजना , प्रोजेक्ट के लिए काम करता है तो
समूह में काम करने के कारण , अन्य लोगो का सहयोग लेने के कारण उसके अंदर समाजिकता का विकास होता है इसके
साथ ही अपने अन्य सहपाठियों के साथ मिलकर किसी एक्टिविटी को पूरा करने में अपने
सहपाठियों व अन्य सहयोगियों के साथ उसकी आत्मीयता विकसित होती है | व भावनात्मक रूप से भी समृद्ध
होता है |
3- गतिविधियों के माध्यम से सीखने पर
विषयवस्तु पूरी तरह समझ में आ जाती है और सीखा हुआ स्मृति पटल पर स्थायी हो जाता
है | विद्यार्थी सीखे हुये को फिर
भूलता नहीं , उसकी स्मृति का विस्तार होता है |
4- खुद करके सीखने से विद्यार्थी की
दक्षताओं (ability) और कौशल (skill) का विकास होता है | विषय ज्ञान के अतिरिक्त उसमें
अन्य कौशल भी विकसित हो जाते हैं |
5- विद्यार्थी जब किसी काम को करता है
, उसमें सफलता हासिल करता है | तो उसके अधिगम के साथ-साथ उसका
आत्म-विश्वास बढ़ता है |
6- विद्यार्थी को जब लगाने लगता है कि
सीखना उसके लिए कठिन नहीं है तो उसे आंतरिक प्रोत्साहन मिलता है और वो इसी तरह आगे
भी सीखते रहने के लिए प्रेरित होता है |
7- करके सीखने से विद्यार्थी को अनुभव
प्राप्त होता है |
8- पारंपरिक व्याख्यान शैली के शिक्षण
की बोरियत से विद्यार्थी को मुक्ति मिलती है | विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ
उसके लिए खेल की तरह होती हैं जो सीखने के साथ-साथ उसका मनोरंजन भी करती हैं | इस कारण पढ़ाई में विद्यार्थी की
रुचि जागृत होती है |
9- बहस , वाद-विवाद , परिचर्चा , भाषण , नाटक , काव्य-पाठ , समूह-चर्चा आदि तमाम ऐसी
गतिविधियाँ हैं जो विषयगत ज्ञान देने के अलावा विद्यार्थी की अभिव्यक्ति क्षमता
में सुधार करती हैं | विद्यार्थी के
शब्द-भण्डार में वृद्धि होती है |
गतिविधियों के प्रकार :- यूँ अलग-अलग विषय के अनुसार गतिविधियों की
प्रकृति अलग-अलग होगी | इसके अलावा किसी पाठ के लिए गतिविधि आयोजित करने में शिक्षक की अपनी कल्पना
और रचनात्मकता की भी बड़ी भूमिका है | विषयवस्तु के आधार पर कुछ शिक्षक पारंपरिक , पूर्व-प्रचलित गतिविधियाँ कराते
हैं तो कई उत्साही , कल्पनाशील
शिक्षक स्वयं नवाचार करते हैं | कई बार यह भी होता है कुछ अति उत्साही शिक्षक क्रिया-कलाप के नाम पर ऐसी-ऐसी
गतिविधियाँ आयोजित कराते हैं जो सिर्फ़ हास्यास्पद और फूहड़ बनकर रह जाती हैं जिससे
कोई विशेष लाभ विद्यार्थियों को नहीं मिलता | इसलिए खूब सोच विचारकर ऐसी
गतिविधि सम्पन्न करानी चाहिए जो विषयवस्तु से सम्बद्ध हो , जिसको करते हुये विद्यार्थी
विषयवस्तु पर चिंतन-मनन करे और किसी निष्कर्ष तक पहुंचे | सामान्य तौर पर पाठ की
आवश्यकतानुसार निम्नलिखित गतिविधियाँ कराई जा सकती हैं –
1-
शारीरिक गतिविधियाँ – इसके अंतर्गत विभिन्न तरह के खेल
आयोजित किए जा सकते हैं |
2-
मानसिक गतिविधियाँ – इसके अंतर्गत पहेली , समस्यापूर्ति , प्रश्नोत्तरी तथा अन्य कई मानसिक
सक्रियता वाले खेल आयोजित किए जा सकते हैं
|
3-
सामाजिक गतिविधियाँ – पर्यटन , पिकनिक , भाषण , वाद-विवाद , बहस , समूह-चर्चा , काव्य-पाठ , सर्वेक्षण, बागवानी आदि कई गतिविधियाँ इस
श्रेणी के अंतर्गत राखी जा सकती हैं |
4-
कला एवं शिल्प – मूर्तिकला , चित्रकला , नक्शा बनाना , ग्राफिक्स , रेखाचित्र , कार्टोग्राफ , काश्तकारी , कशीदाकारी , नृत्य , गायन जैसी तमाम गतिविधियाँ इस श्रेणी
के अंतर्गत आएंगी |
5-
नाटकीय गतिविधियाँ – नाटक , एकाँकी , स्वकथन , किस्सागोई आदि गतिविधियाँ इस
श्रेणी में सम्मिलित की जा सकती हैं |
उपरोक्त वर्गीकरण व बताई गई
गतिविधियाँ ही अंतिम नहीं हैं | इन्हें सिर्फ उदाहरण के तौर पर यहाँ बताया गया है | जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है यह
शिक्षक की कल्पनाशीलता और रचनात्मकता पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार विषय की ज़रूरत के अनुसार
नवाचार करता है | निष्कर्षतः इतना तो सिद्ध है कि गतिविधि आधारित शिक्षा आज
के समय की मांग है |
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