बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

अध्यापक यानी जीवन भर विद्यार्थी

 


सीखना एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है  | व्यक्ति अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है | औपचारिक शिक्षा के अतिरिक्त  वह अपने परिवार अपने परिवेश , अपने कार्यस्थल हर जगह से कुछ न कुछ सीखता है | उसका यही सीखना उसके अनुभव और उसकी क्षमताओं को समृद्ध करता है | शिक्षक भी इसका अपवाद नहीं है | किन्तु यह विडम्बना ही है कि एक विषय अध्यापक के रूप में हमारे अधिकतर शिक्षकों की पढ़ने और सीखने की प्रवृत्ति सिर्फ़ नौकरी लगने तक ही जारी रहती है | पठन-पाठन से उनके जुड़ाव का एक मात्र उद्देश्य नौकरी हासिल करना होता है और नौकरी लगते ही उनकी पढ़ने की आदत धीरे-धीरे खत्म होती जाती है | साल-दर-साल निर्धारित पाठ्यक्रम को पढ़ाने के अतिरिक्त अपने विषय में हो रहे नित नए शोध , स्थापनाओं , विचारों , अद्यतन गतिविधियों एवं शिक्षण-प्रविधियों में आ रहे नए-नए बदलाव की उन्हें कुछ जानकारी नहीं होती | उनका शिक्षण कार्य एक ढर्रे पर एक जैसा चलता रहता है | ऐसे शिक्षकों में न तो खुद नया जानने की उत्सुकता शेष बचती है और न ही वे अपने विद्यार्थियों की जिज्ञासु वृत्ति को प्रेरित कर पाते हैं | नौकरी चल रही है , तनख़्वाह मिल रही है और परंपरागत तरीके से एक ढर्रे पर शिक्षण कार्य करते हुये सत्र गुजरते चले जाते हैं | एक शिक्षक के रूप में अपने शैक्षणिक दायित्वों के प्रति उदासीनता की प्रवृत्ति अधिकांश सरकारी शिक्षकों में देखने को मिलती है | वे अपने  अधिकांश समय और ऊर्जा को उन कार्यों में खर्च करते हैं जिनका शिक्षण से कोई लेना देना नहीं होता |

मेरे अनुभव में ऐसे कई उदाहरण हैं कि टीजीटी (एलटी ग्रेड) स्तर के अध्यापक जो जूनियर कक्षाओं को पढ़ाते हैं , माध्यमिक स्तर की कक्षाओं को पढ़ाने में असफल सिद्ध होते हैं | यदि उनसे कभी किसी माध्यमिक स्तर की कक्षा को पढ़ाने का अनुरोध कर दिया जाये तो उनकी क्षमता जवाब देने लगती है | भले ही उनका पद माध्यमिक स्तर की कक्षा को पढ़ाने के लिए न हो , फिर भी किन्हीं परिस्थितियों में कभी पढ़ाना ही पड़ जाये तो वहाँ उन्हें असमर्थ नहीं सिद्ध होना चाहिए क्योंकि उन्होने भी  उस  विषय में कम-अज-कम स्नातक किया हुआ होता है और बहुत से टीजीटी तो उस विषय में परास्नातक भी होते हैं , किन्तु वास्तविकता में ऐसा नहीं होता | कारण स्पष्ट है कि अपने विषय में पढ़ाई जा रही कक्षाओं के निर्धारित पाठ्यक्रम को छोडकर बाकी ज्ञान से धीरे-धीरे उनका नाता छूटता चला जाता है | वे जिन कक्षाओं में पढ़ाते हैं , वहाँ भी किसी नवाचार और गहराई में जाकर विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम के अलावा अतिरिक्त ज्ञान देने की संभावना शून्य हो जाती है जिससे विद्यार्थियों की जिज्ञासा को उद्देलित किया जा सके | यही हाल कमोबेश परास्नातक शिक्षकों का भी होता है |

तकनीकी का विकास जिस तेजी से हुआ है संचार और संवाद के माध्यमों में क्रांतिकारी बदलाव आए हैं जिनका प्रभाव शिक्षा जगत पर भी पड़ा है | आज का विद्यार्थी विषय ज्ञान के लिए सिर्फ कक्षा-शिक्षक पर निर्भर नहीं है | स्मार्ट फोन की सस्ती और सहज उपलब्धता तथा सोशल मीडिया की व्यापकता  ने विद्यार्थी के सामने इन्टरनेट के ज्ञान के विराट संसार में प्रवेश करने के कई-कई द्वार खोल दिये हैं | यू ट्यूब और दूसरे  ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर वह किसी भी विषय में देश ही नहीं दुनिया के श्रेष्ठतम अध्यापको से पढ़ सकता है  | यह स्थिति जहां विद्यार्थियों के लिए सुखद है वहीं उन अध्यापकों के लिए चुनौतीपूर्ण है जो समय के साथ चलना नहीं चाहते | यह सच्चाई है कि हमारे तमाम वरिष्ठ अध्यापक तकनीक में पारंगत नहीं हैं | वे सदा परंपरागत ढंग से ही शिक्षण करते रहना चाहते हैं | मैं ऐसे तमाम शिक्षकों को जानता हूँ जो अच्छी तरह स्मार्टफोन संचालित करना भी नहीं जानते | इस मामले में युवा शिक्षक बेहतर हैं | इक्कीसवी सदी का विद्यार्थी बहुत स्मार्ट है , उसे पारंपरिक तरीके के शिक्षण से प्रभावित नहीं किया जा सकता | शिक्षक के सामने चुनौती है अपनी प्रासंगिकता को सिद्ध करने की | विद्यार्थियों के सामने सीखने के जो आधुनिक विकल्प मौजूद हैं , अध्यापक जब तक खुद को उसी तरह आधुनिक और बेहतर सिद्ध नहीं करेगा तब तक वह विद्यार्थी से सम्मान और  जुड़ाव नहीं पा सकता | यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ऑनलाइन माध्यमों से विद्यार्थी विषय का अच्छे से अच्छा ज्ञान प्राप्त कर सकता है किन्तु उसकी समवेदनाओं का विकास नहीं हो सकता | कक्षा शिक्षण के दौरान विद्यार्थी का अपने सहपाठियों , अपने शिक्षकों से एक संबंध बनता है , उसके जीवन में कुछ खट्टे-मीठे अनुभव जुड़ते हैं , जो बाद में उसकी स्मृतियों की धरोहर बनते हैं | कक्षा-शिक्षण के दौरान विद्यार्थी की सामाजिकता विकसित होती है | कक्षा-शिक्षण में शिक्षक सिर्फ विषय ज्ञान ही नहीं देता बल्कि विद्यार्थी के अंदर नैतिक मूल्यों का विकास भी करता है | अतः एक अध्यापक का अपनी भूमिका से भागना उचित नहीं |

जरूरी है कि विद्यार्थी के साथ-साथ शिक्षक भी हमेशा विद्यार्थी बना रहे | सीखने की कोई उम्र नहीं होती | नई तकनीक को सीखना इतना कठिन भी नहीं | अध्यापकों को चाहिए की वह विद्यार्थियों की अपेक्षाओं पर खरे उतरने के लिए अपनी शिक्षण-प्रविधियों को स्मार्ट बनाएँ | शिक्षण में कंप्यूटर का इस्तेमाल करें | पावर प्वाइंट के माध्यम से पढ़ाएँ , और दूसरी तकनीकों का भी इस्तेमाल करें | इससे शिक्षण रोचक बनेगा जो विद्यार्थियों को आकर्षित करने में सक्षम होगा | इन नयी तकनीकों को सीखने , पाठ्य-सामग्रियों के निर्माण में यदि विद्यार्थियों का ही सहयोग लिया जाये तो कोई गुरेज नहीं क्योंकि इस मामले में वे हम शिक्षकों से ज्यादा पारंगत हैं | अपने कौशल को अपडेट करने के लिए अपने विद्यार्थियों से भी कुछ सीखना पड़े तो इसमें शर्म की कोई बात नहीं होनी चाहिए | आपका शिक्षण ऐसा होना चाहिए कि विद्यार्थी को आपकी आवश्यकता महसूस हो | उसे यू ट्यूब चैनलों और अन्य ऑनलाइन कक्षाओं से ज्यादा लाभप्रद आपकी कक्षा में उपस्थित रहना लगे तभी एक शिक्षक के रूप में आप अपनी प्रासंगिकता बना पाएंगे |

शिक्षक साथियों को चाहिए कि वे अध्ययन से अपना नाता तोड़ें नहीं | जिस भी माध्यम से हो अपने विषय से संबन्धित अद्यतन गतिविधियों की जानकारी रखें | देश-दुनिया में होने वाली तमाम गतिविधियों पर सजग और तार्किक दृष्टि रखें | जो व्यसाय आपकी आजीविका का साधन है उस व्यवसाय में अपने को बेहतर बनाए रखने के लिए कुछ धनराशि खर्च भी करनी पड़े तो कोई हर्ज नहीं है | अपने विषय से संबन्धित पत्र-पत्रिकाओं , जर्नल , शोध-पत्रों और नवीन पुस्तकों को मंगाए और उन्हें पढ़ें |

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