रविवार, 22 अक्तूबर 2023

कैसे करें सपोर्टिव लर्नर को सपोर्ट

 कैसे करें सपोर्टिव लर्नर को सपोर्ट

डॉ दिनेश त्रिपाठी 

एक शिक्षक के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है कमजोर विद्यार्थियों के स्तर को सुधारना | कक्षा शिक्षण के दौरान अध्यापक सभी विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाता है जिसमें कुशाग्र एवं औसत विद्यार्थियों का अधिगम तो हो जाता है , किन्तु कमजोर विद्यार्थियों का अधिगम नहीं हो पाता | परिणामतः पठन-पाठन में उनकी अभिरुचि घटती जाती है , परीक्षा में उनका प्रदर्शन खराब होता है और वे अनुत्तीर्ण हो जाते हैं | यूँ परीक्षा के प्राप्तांक ही किसी विद्यार्थी की योग्यता का पैमाना नहीं है किन्तु औपचारिक शिक्षा में पारंपरिक रूप से विद्यार्थी के अधिगम का मूल्यांकन प्राप्तांक से ही  होता आया है और आज भी परीक्षा के प्राप्तांकों के आधार पर ही अधिगम का मूल्यांकन किया जाता है |  सभी शैक्षणिक संस्थाओं का प्रथम लक्ष्य होता है वहाँ पंजीकृत शत-प्रतिशत विद्यार्थियों का उत्तीर्ण होना | यानी क्वालिटी रिजल्ट तो चाहिए मगर उससे भी पहले क्वान्टिटी रिजल्ट | कोई शैक्षणिक संस्थान नहीं चाहता कि उसके यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हों | शिक्षक की योग्यता का आकलन भी उसके द्वारा पढ़ाये गए विद्यार्थियों के उत्तीर्ण प्रतिशत से ही किया जाता है | इसलिए हर शिक्षक का उद्देश्य कम अज़ कम हर विद्यार्थी को पास करा देने का ज़रूर रहता है | कमजोर विद्यार्थियों के शैक्षणिक प्रदर्शन को सुधारने के लिए तमाम तरीके अपनाए जाते हैं | इस मुद्दे पर सैद्धान्तिक रूप से तमाम आलेख , पुस्तकें आदि मिल जाएंगी | बीएड के पाठ्यक्रम में भी इस मुद्दे पर अध्याय होंगे ही , किन्तु मेरा उद्देश्य अब तक के अपने अध्यापकीय अनुभव के आधार पर व्यावहारिक सुझाव देना है और मेरा पूर्ण विश्वास है कि इन सुझावों का अनुसरण कर मेरे साथी शिक्षक काफी हद तक सफलता प्राप्त कर सकते हैं | 

 कमजोर विद्यार्थियों के अधिगम स्तर को सुधारने का सबसे पहला और महत्त्वपूर्ण मंत्र तो यही है कि उन्हें न तो कमजोर माना जाये और न ही कहा जाये | कमजोर विद्यार्थियों को कमजोर कहने से उनमें हीन भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण उनका आत्मविश्वास दिनो-दिन घटता जाता है | परिणामतः वह मान बैठता है कि उसके बस का नहीं है | एक शिक्षक के रूप में हमारा दायित्व है कि हम विद्यार्थी के आत्मविश्वास को बढ़ाएँ | पूर्व में शिक्षाविदों द्वारा कमजोर विद्यार्थियों को रेमेडियल स्टूडेंट (उपचारात्मक विद्यार्थी ) कहा जाता था अर्थात जिन्हें शैक्षणिक उपचार की आवश्यकता है | फिर उन्हें स्लो लर्नर और लो एचीवर की संज्ञा दी गई | आजकल कमजोर विद्यार्थियों को सपोर्टिव लर्नर कहा जाना ज़्यादा उपयुक्त माना जाता है | इन बदलाव के पीछे मूल मंशा सिर्फ यही है कि विद्यार्थी को उसके कमजोर होने का एहसास न कराया जाये | शिक्षक हमेशा ऐसे विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करें कि यह तुम कर सकते हो , यह तुमसे संभव है , तुम भी अच्छे अंक  ला सकते हो | 

 मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे बड़ों की अपेक्षा अपने हम उम्र दोस्तो से अधिक सीखते हैं क्योंकि वे उनके साथ ज़्यादा सहज होते हैं | अध्यापकों को विद्यार्थियों की इस स्वाभाविक मनोवृत्ति का फायदा उठाते हुये कक्षा में उनके छोटे-छोटे समूह निर्मित करने चाहिए | प्रत्येक समूह में एक मेधावी विद्यार्थी ( high achiever ) , एक औसत विद्यार्थी ( average achiever ) तथा एक कमजोर विद्यार्थी ( supportive learner ) को सम्मिलित किया जाना चाहिए | कमजोर विद्यार्थी दिये गए एसाइनमेंट को पूरा करने की प्रक्रिया में अपने सहपाठी से सहजता से सीखता जाता है | 

 कक्षा-शिक्षण के दौरान कक्षा में सभी स्तर के विद्यार्थी मौजूद होते हैं | इसलिए वहाँ अलग-अलग स्तर के विद्यार्थियों के लिए अलग-अलग शिक्षण-पद्धति ( teaching mathedology) का इस्तेमाल कर पाना शिक्षक के लिए संभव नहीं होता  है | शिक्षक को समय से पाठ्यक्रम भी पूरा करना होता है | जैसा कि पहले चर्चा की जा चुकी है कि कक्षा-शिक्षण के दौरान मेधावी विद्यार्थी एवं औसत विद्यार्थी तो विषयवस्तु को आसानी से समझ जाते हैं , किन्तु कमजोर विद्यार्थी विषयवस्तु को पूरी तरह समझ नहीं पाते | सहपाठियों के बीच मज़ाक का पात्र बन जाने के डर से वे बढ़-चढ़ कर अध्यापक से सवाल भी नहीं पूछते | जिस वजह से उनकी शंकाओं का समाधान भी नहीं हो पाता | जब उनकी समझ में नहीं आता तो पढ़ने के प्रति उनकी रुचि घटने लगती है और वे तरह-तरह की शरारती गतिविधियों में लिप्त होने लगते हैं | अध्यापकों को कमजोर विद्यार्थियों की अलग से अतिरिक्त कक्षाएं ( extra classes ) लेनी चाहिये | अध्यापकीय कर्तव्य को कार्य के घंटों से नापने वाले शिक्षकों के लिए अतिरिक्त कक्षाएं लेना अतिरिक्त भार ही लगेगा किन्तु विद्यार्थी की उपलब्धियों से अध्यापकीय कर्तव्य का मूल्यांकन करने वाले शिक्षक सहर्ष अतिरिक्त कक्षाएं लेंगे | अध्यापक को इन अतिरिक्त कक्षाओं में पाठ का अध्यापन अधिकाधिक सरल व सहज ढंग से करने का प्रयास करना चाहिए | इसके लिए शिक्षक को चाहिए कि वह , कमजोर विद्यार्थियों के स्तर को ध्यान में रखते हुये , किस पाठ को किस प्रविधि ( mathedology ) से पढ़ाना है इसका निर्णय सोच-विचार करके पढ़ाने से पहले ही कर ले | 

 विद्यार्थियों के लिए हर पाठ की कठिनाई का स्तर अलग-अलग होता है | शिक्षा बोर्ड भी इस बात को स्वीकार करते हैं | शिक्षा बोर्डों द्वारा प्रश्न-पत्रों का जो प्रारूप तैयार किया जाता है उसमें लगभग 75 प्रतिशत भारांक सरल पाठों का होता है | सिर्फ 25 प्रतिशत भारांक उन पाठों का होता है जो विद्यार्थियों के लिए अधिगम की दृष्टि से कठिन होते हैं | शिक्षा-बोर्डों द्वारा निर्धारित प्रश्न-पत्र के प्रारूप में यह भी पूर्व-नियोजित होता है कि किस पाठ से कितने अंक के तथा किस प्रकृति (अति लघु उत्तरीय , लघु उत्तरीय , निबंधात्मक , वस्तुनिष्ठ , बहुविकल्पी , आत्मनिष्ठ ) के प्रश्न पूछे जाएँगे | सामान्यतः होता यह है कि अध्यापक शिक्षा-बोर्डों द्वारा निर्धारित प्रश्न-पत्र के प्रारूप में प्रत्येक पाठ के भारांक व प्रश्नों की प्रकृति को जाने बगैर अपनी सारी ऊर्जा व कौशल कमजोर विद्यार्थियों को उस पाठ को पढ़ाने-समझाने में लगा देते हैं जो अपेक्षाकृत कठिन हैं | इसी तरह कमजोर विद्यार्थी भी अपना अधिकांश समय और ऊर्जा उन्हीं कठिन पाठों को समझने की कोशिश में नष्ट कर देते हैं | इस चक्कर में अपेक्षाकृत सरल पाठों की तैयारी तो उनसे छूटती ही है , कठिन पाठों के प्रति भी उनका कन्फ़्यूजन बना रह जाता है जिससे दिन- प्रतिदिन उनका आत्मविश्वास गिरता चला जाता है और अंततः परीक्षा में उनका परिणाम निराशाजनक आता है | शिक्षकों को चाहिए की सबसे पहले बोर्ड द्वारा निर्धारित प्रश्न-पत्र के प्रारूप और प्रत्येक पाठ के भारांक को अच्छी तरह जान लें फिर विद्यार्थियों को भी प्रश्न-पत्र के प्रारूप से अवगत कराएं , प्रश्न-पत्र में आने वाले हर प्रकृति के प्रश्नों से अवगत कराएं   | तत्पश्चात कमजोर विद्यार्थियों से उन्हीं पाठों का अधिकाधिक अभ्यास करवाएँ जो अपेक्षाकृत आसान हैं | जब कमजोर विद्यार्थी सरल अंशों की अधिकाधिक तैयारी करेगा , उनसे पूछे गए प्रश्नों को आसानी से हल कर लेगा तो उसका आत्मविश्वास बढ़ेगा और वह अपनी हीन  भावना से उबरेगा | चूंकि पाठ्यक्रम के सरल अंशों का प्रश्न-पत्र में भारांक अधिक होता है , तो कमजोर विद्यार्थियों के लिए भी संतोषजनक अंकों के साथ परीक्षा में उत्तीर्ण होना मुश्किल नहीं रहेगा | कारण स्पष्ट है कि उसने अपने समय और ऊर्जा का उपयोग अपनी क्षमता को आँकते हुये सही दिशा में किया | 

 कमजोर विद्यार्थी प्रश्न-पत्र देखकर ही भयभीत हो जाते हैं | परीक्षा के नाम से ही उन्हें कंपकंपी छूटने लगती है | उन्हें अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं रहता | इसलिए शिक्षक का ये भी महत्त्वपूर्ण दायित्व है कि विद्यार्थी के इस भय ( exam fear ) को दूर किया जाये और उसे उसकी क्षमताओं पर यकीन करना सिखाया जाये | इसका सबसे अच्छा तरीका है कि विद्यार्थी से पूरे प्रश्न-पत्र को हल करने का अभ्यास करवाने की बजाय शुरुआत छोटे-छोटे स्लिप टेस्ट से की जाये | विद्यार्थी को क्रमशः एक-एक पाठ से सिर्फ दो-तीन प्रश्नों के उत्तर अच्छी तरह से समझाएँ , उन उत्तरों को अच्छी तरह से तैयार करने के निर्देश दें और फिर उन्हीं प्रश्नों को हल करके दिखाने को कहें | यह क्रम क्रमशः प्रत्येक पाठ से नियमित चलते रहना चाहिए | छोटे-छोटे परीक्षण में सफल होने पर न केवल विद्यार्थी का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है बल्कि वह तीन घंटे के पूरे प्रश्न-पत्र का सामना करने के लिए भी तैयार होता चला जाता है |

 कमजोर विद्यार्थियों के प्रदर्शन को सुधारने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में उत्तर-पुस्तिकाओं के मूल्यांकन की अहम भूमिका है | शिक्षक को कमजोर विद्यार्थियों की उत्तर-पुस्तिकाओं को उनके सामने ही जाँचना चाहिए | उत्तर-पुस्तकाओं को जाँचते हुये विद्यार्थी को बताया जाये कि अंक किसलिए काटे गए तथा उन्हें सही उत्तर से भी अवगत कराया जाये | परीक्षा की उत्तर-पुस्तिका के साथ-साथ विद्यार्थी की कक्षा नोट-बुक भी इसी सजगता के साथ उसके सामने ही जाँची जाये | ऐसा करने से धीरे-धीरे विद्यार्थी की गलतियाँ कम होती जाएंगी | यदि संभव हो तो सिर्फ कमजोर विद्यार्थी ही नहीं सभी विद्यार्थियों की उत्तर-पुस्तिकाएँ और क्लास नोट-बुक इसी तरह जाँची जाएँ | 

 उपचार के लिए सही निदान ( dignose) होना ज़रूरी है | अगर निदान सही नहीं हुआ तो सारा उपचार व्यर्थ होता जाएगा | एक शिक्षक के लिए सपोर्टिव लर्नर की कमजोरियों की पहचान करना बहुत जरूरी है | यह पता लगाना अत्यावश्यक है कि पाठ्यक्रम के कौन से हिस्से हैं जिनके अधिगम में विद्यार्थी कठिनाई महसूस करता है तथा परीक्षा में विद्यार्थी किस प्रकार की गलतियाँ कर रहा है | कमजोरी के बिन्दुओं की जांच की प्रविधि बहुआयामी है | शिक्षक का अनुभव , बाल मनोविज्ञान की उसकी समझ तथा विषय की गहराई आदि कई बातें हैं जिनके आधार पर शिक्षक पाठ्यक्रम के उन क्षेत्रों की पहचान करता है जिनमें विद्यार्थी कमजोर है | चूंकि इस आलेख का उद्देश्य परीक्षा में विद्यार्थी के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए किए जाने वाले उपायों की चर्चा करना है , इस लिहाज से निदान का जो सबसे महत्त्वपूर्ण तरीका है , वह है परीक्षा के उपरांत सपोर्टिव लर्नर की उत्तर-पुस्तिका की प्रश्नवार समीक्षा करना ( questionwise analysis ) | इसके लिए किसी विषय में  सपोर्टिव लर्नर के प्राप्तांकों का प्रश्नवार एक चार्ट निर्मित किया जाता है | चार्ट का नमूना इस प्रकार है –

      

क्रम संख्या 

विद्यार्थी का नाम 

प्रश्न-1

प्रश्न-2

प्रश्न- 3 

प्रश्न- 4 

प्रश्न- 5 

प्रश्न- 6 

प्रश्न- 6 

प्रश्न- 7 




पूर्णांक















प्राप्तांक
























   

     उक्त चार्ट के आधार पर शिक्षक को एक नज़र में पता चल जाएगा कि किस प्रश्न में सर्वाधिक विद्यार्थियों ने कम अंक प्राप्त किए हैं तथा किस प्रश्न में सर्वाधिक विद्यार्थियों ने अधिक अंक प्राप्त किए हैं | ये चार्ट व्यक्तिगत स्तर पर अलग-अलग विद्यार्थियों तथा सामूहिक स्तर पर पूरी कक्षा के प्रश्नवार प्रदर्शन के विश्लेषण में उपयोगी होता है | यह विश्लेषण शिक्षकों की मदद करता है कि आगे के शिक्षण में उन्हें किन बिन्दुओं पर ज्यादा फोकस करना है , शिक्षण प्रविधि में किस तरह के बदलाव करने हैं और विद्यार्थियों को किन बिन्दुओं पर ज्यादा अभ्यास कराने की आवश्यकता है | हर बार प्रश्न-पत्र मे प्रश्नों की संख्या  और अपनी ज़रूरत के हिसाब से अध्यापक  इस चार्ट में बदलाव भी कर सकते हैं | 

(8)- कई बार अच्छे मेधावी विद्यार्थी का प्रदर्शन भी परीक्षाओं में खराब रहता है और उनकी गणना उपचारात्मक विद्यार्थी के रूप में हो जाती है | अध्यापक का दायित्व है कि ऐसे विद्यार्थियों की पहचान भी सुनिश्चित करें और उनके खराब प्रदर्शन के कारणों की तह में जाने की कोशिश करें | ऐसे विद्यार्थियों का मन भावनात्मक उथल-पुथल , डिप्रेशन आदि के कारण पढ़ाई से मन उचट जाता है और उनका प्रदर्शन खराब होने लगता है | पारिवारिक समस्या , किशोरावस्था की समस्या , कोई बीमारी , प्रेम-संबंध , रैगिंग , सहपाठियों की ओर से समस्या या ऐसी अन्य कई वजहें हो सकती हैं जिनके कारण विद्यार्थी मानसिक रूप से विचलित रहता है और अपने आपको पढ़ाई पर केन्द्रित नहीं कर पाता | अध्यापक को चाहिए कि ऐसे विद्यार्थियों से बात करें , उनका विश्वास अर्जित करें , उनकी समस्या की तह तक जाने की कोशिश करें , उनकी काउंसिलिंग , करें उन्हें समझाने का प्रयास करें | आवश्यकता पड़ने पर प्रोफेशनल काउन्सलर की मदद भी ली जा सकती है | निरंतर प्रयास से इस विचलन से भी विद्यार्थी को उबारा जा सकता है |

डॉ दिनेश त्रिपाठी 

जवाहर नवोदय विद्यालय 

ग्राम- अदलबारी , निकासी रोड , मुशलपुर , 

ज़िला – बक्सा -781372 , असम 

मोबाइल – 9559304131 

ईमेल- yogishams@yahoo.com  

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