बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

अध्यापक की बुलंद एवं प्रभावी आवाज़

 

बुलंद एवं प्रभावी आवाज़

मेरे एक मित्र शिक्षक हैं | अपने विषय मेन बेहद योग्य | पढ़ाते बहुत अच्छा हैं किन्तु मैंने देखा कि उनकी कक्षा में विद्यार्थी रुचि नहीं लेते | पीछे की पंक्ति में बैठे विद्यार्थी या तो कोई दूसरा विषय पढ़ते रहते या आपस में बातचीत करते | बेहद अच्छा शिक्षण करने के बावजूद कक्षा पर उनका नियंत्रण नहीं रहता | उनके विषय का परीक्षा परिणाम भी औसत ही रहता | इसके कारण की जब मैंने गहराई से पड़ताल की तो मेरा निष्कर्ष यह निकला कि कक्षा-शिक्षण के दौरान उनकी आवाज़ बुलंद और प्रभावी नहीं है | वे शिक्षण के दौरान इतने मंद स्वर में बोलते कि उनका कहा पिछली पंक्ति में बैठे विद्यार्थियों को स्पष्ट सुनाई नहीं पड़ता | शायद ही किसी शिक्षक-प्रशिक्षण के दौरान शिक्षक को उसकी आवाज़ के महत्त्व के बारे में बताया जाता हो | अब तक के अपने शिक्षकीय अनुभव के बाद मेरा मानना है कि बुलंद एवं प्रभावी आवाज़ भी अच्छे शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण घटक है | मेरा यह भी मानना है कि अध्यापन के दौरान शिक्षक की आवाज़ को रंगमंच के एक कलाकार की तरह होना चाहिए |

शिक्षक की आवाज़ न तो धीमी होनी चाहिए न ही बहुत तेज़ | आवाज़ इतनी होनी चाहिए कि कक्षा के सभी विद्यार्थियों को अध्यापक की काही बात सुस्पष्ट सुनाई पड़े और समझ मे आए | कई शिक्षक बोलते तो तेज़ हैं मगर इतनी जल्दी बोलते हैं कि क्या कहा गया है समझ में नहीं आता तो कई शिक्षक ऐसा चबा-चबा कर बोलते हैं कि वहाँ भी सुस्पष्ट सम्प्रेषण नहीं हो पाता है | तो आवाज़ सुस्पष्ट और इतनी तेज़ होनी चाहिए कि सबको सुनाई पड़े व समझ में आए | अगर ऐसा नहीं होगा तो विद्यार्थी शिक्षक से ध्यान हटाकर दूसरी शरारतों में लिप्त हो जाएँगे | बुलंद आवाज़ में एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव होता है जो सुनने वाले का ध्यान आकर्षित करती है | इसीलिए आपने देखा होगा कि नेताओं , मोटीवेशनल स्पीकर आदि की आवाज़ दमदार होती है | बुलंद आवाज़ में आत्मविश्वास झलकता है | आत्मविश्वास से भरा शिक्षक विद्यार्थियों को अपने सम्मोहन में बांध सकता है | आत्मविश्वास से भरा शिक्षक ही कक्षा को नियंत्रित कर सकता है | दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि शिक्षक की आवाज़ में नाटकीयता होनी चाहिए | यहाँ नाटकीयता का आशय कृतिमता नहीं बल्कि जीवंतता है | शिक्षक को वर्ण्य-विषय के भावानुरूप आरोह-अवरोह के साथ बोलना चाहिए | पाठ में वर्णित भाव उसकी आवाज़ में झलकना चाहिए | इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि विद्यार्थी के लिए शिक्षक को सुनना रुचिकर होता है और वह वर्ण्य-विषय के साथ तादाम्य स्थापित करता है | वह पाठ से पूरी तरह से जुड़ जाता है | यूँ तो भावानुरूप आवाज़ का आरोह-अवरोह सभी शिक्षकों के लिए उपयोगी है किन्तु मानविकी विषय के शिक्षकों में तो यह गुण उनके शिक्षण को कई गुना प्रभावी बना देता है | हर व्यक्ति की अपनी अलग शैली और विशिष्टता होती है इसलिए कहा जा सकता है कि सभी शिक्षकों में यह गुण हो ऐसा ज़रूरी नहीं है | किन्तु मेरा यह स्पष्ट मानना है कि यदि शिक्षण को सफल बनाना है तो इस गुण का धीरे-धीरे विकास हर शिक्षक को करना चाहिए | हाँ , उन कारपोरेट अद्यापकों की बात अलग है जिनकी कक्षा में सैकड़ों विद्यार्थी एक साथ होते हैं और जो शिक्षण के दौरान कालर माइक का इस्तेमाल करते हैं , या जो अध्यापक यूट्यूब पर ऑनलाइन अध्यापन करते हैं , उनकी दुनिया अलग है |  वे चाहें तो मेरी इस बात को हवा में उड़ा सकते हैं |

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