ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड / डिजिटल बोर्ड
माध्यमिक
स्तर पर शिक्षण की व्याख्यान शैली (lecture method) को शिक्षाविदों द्वारा बहुत उपयुक्त नहीं
माना जाता | हांलाकि उच्च शिक्षा में अधिकांशतः इसी
व्याख्यान शैली का प्रयोग अध्यापकों के द्वारा किया जाता है | माध्यमिक स्तर पर व्याख्यान शैली बहुत प्रभावी नहीं होती है | इस स्तर के विद्यार्थी किशोर होते हैं , जिनमें
सिर्फ सुनकर विषय की समझ विकसित करने की परिपक्वता नहीं आई होती | मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सुनी गई से ज्यादा देखी गई और देखी गई से
ज्यादा लिखी गई बात का प्रभाव मस्तिष्क पटल पर अधिक स्थायी होता है | इसलिए शिक्षक को अपने शिक्षण में अधिकाधिक श्याम पट (black board ) का इस्तेमाल करना चाहिए | आधुनिकीकरण के चलते आजकल श्याम पट की जगह श्वेत पट ( white board ) का इस्तेमाल होने लगा है | श्वेत पट पर चॉक की जगह रिमूवेबल मार्कर पेन ने ले लिया है | चूंकि श्याम पट और श्वेत पट को आम बोलचाल में ब्लैक बोर्ड और व्हाइट
बोर्ड ही पुकारा जाता है तो आगे के विश्लेषण में हम भी इसी का इस्तेमाल करेंगे | शिक्षण प्रक्रिया में ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड
का विशेष महत्त्व है | कक्षा में ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड अध्यापक का मित्र होता है |
शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सही , प्रभावपूर्ण , समुन्नत बनाने के लिए अध्यापक अनेक प्रकार से स्वकौशल का प्रदर्शन ब्लैक
बोर्ड / व्हाइट बोर्ड पर करता है |
उदाहरण के लिए कार्टून , चित्र , ग्राफ
, समय-सारिणी आदि का ब्लैक बोर्ड /
व्हाइट बोर्ड के माध्यम से विद्यार्थियों को अवगत कराना | एक
कुशल शिक्षक पाठ के महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को ब्लैक बोर्ड /
व्हाइट बोर्ड पर लिखना नहीं भूलता |
ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड का इस्तेमाल करने से शिक्षण में वस्तुनिष्ठता आती है | मुद्दे से भटकाव की संभावना कम होती है | गणित जैसे
विषय अपनी प्रकृति मे ही वस्तुनिष्ठ होते हैं वहाँ इकवेशन ,
कैलकुलेशन , समीकरण , चित्रा , ग्राफ आदि लिखकर , बनाकर प्रकरण को स्पष्ट करने की
अनिवार्यतः रहती है , किन्तु मानविकी के विषयों मे अध्यापन
के आत्मनिष्ठ हो जाने की संभावना अधिक रहती है | चर्चा कहीं
से शुरू होकर कहीं पहुँच जाती है | ऐसे में यदि शिक्षक के
व्याख्यान की प्रस्तुति आकर्षक नहीं हुई तो विद्यार्थियों के अधिगम की दृष्टि से
निष्प्रभावी हो जाती है | कई बार आकर्षक व्याख्यान भी
विद्यार्थियों के लिए रंजक तो होता है , किन्तु अधिगम स्थायी
नहीं हो पाता है | सुनी गई बातों में से अधिकांशतः कक्षा के
उपरांत स्मृति से गायब हो जाती हैं | वहीं जब अध्यापक पाठ के
ज़रूरी तथ्यों और महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को ब्लैक बोर्ड /
व्हाइट बोर्ड पर लिखकर उनका विश्लेषण करता है तो वे बातें विद्यार्थी के मस्तिष्क
मे स्थायी तौर पर फीड हो जाती हैं | अध्यापक उन बिन्दुओं और
तथ्यों को नोटबुक में उतारने का निर्देश देता है |
विद्यार्थी जिंका बाद में रिवीजन भी करता है | उन तथ्यों और
बिन्दुओं की मदद से प्रश्नों के उत्तर लिखता है | इस प्रकार
तथ्यों , महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को बार-बार देखने-पढ़ने से
अधिगम मजबूत होता चला जाता है | महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर नज़र
पड़ते ही दिमाग में पूरे पाठ की पुनरावृत्ति हो जाती है | इस
तरह सुनना , देखना और लिखना तीनों मिलकर उसके अधिगम को पुष्ट
कर देते हैं | जैसा कि कहा जा चुका है कि ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड का प्रयोग अध्यापक को मुद्दे से भटकने से रोकता है तो यह
अध्यापक के लिए कालांश की निर्धारित अवधि मेन अपने लक्षित प्रकरण को समाप्त करने
में भी सहायक होता है | ब्लैक बोर्ड /
व्हाइट बोर्ड का प्रयोग शिक्षण को क्रमबद्ध , व्यवस्थित और
सुनियोजित भी बनाता है | अतः शिक्षक को अपने शिक्षण में
अधिकाधिक ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड का प्रयोग करना चाहिए |
ब्लैक
बोर्ड / व्हाइट बोर्ड के प्रयोग में शिक्षक को
निम्नलिखित बातों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए –
1-
स्पष्ट , स्वच्छ और सुंदर लेखन होना चाहिए |
2-
अक्षरों का
आकार और लिखने क्रम सही होना चाहिए |
3-
मुख्य
बिन्दुओं को रेखांकित करना चाहिए |
4-
शब्दों के
बीच उचित अंतराल होना चाहिए |
5-
ब्लैक बोर्ड
/ व्हाइट बोर्ड के सामने खड़े नहीं होना चाहिए
|
6-
कक्षा की
समाप्ति के बाद ब्लैक बोर्ड / व्हाइट
बोर्ड को स्वच्छ करना चाहिए ताकि अगली कक्षा के अध्यापक को ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड को साफ न करना पड़े |
तकनीक
के विकास का प्रतिफल है डिजिटल बोर्ड | हांलाकि ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड की अपेक्षा
महंगा होने के कारण अभी इसकी उपलब्धता कम ही विद्यालयों में है , लेकिन धीरे-धीरे इसका विस्तार हो रहा है और निकट भविष्य में कक्षाओं में ब्लैक
बोर्ड / व्हाइट बोर्ड की जगह डिजिटल बोर्ड ही हुआ करेंगे | डिजिटल बोर्ड अधिक उपयोगी , अधिक सुविधाजनक होने के
कारण अधिक प्रभावी है | डिजिटल बोर्ड एक तरह का कंप्यूटर है
जो ब्लैक बोर्ड / व्हाइट बोर्ड की जगह पर इस्तेमाल किया जाता
है | इसका प्रयोग ब्लैक बोर्ड / व्हाइट
बोर्ड की तरह लिखने के लिए तो किया ही जा सकता है साथ ही कंप्यूटर के मॉनिटर की
तरह इसका प्रयोग सहायक सामग्री के रूप में किया जा सकता है |
कंप्यूटर पर होने वाली सभी गतिविधियाँ डिजिटल बोर्ड पर सम्पन्न की जा सकती हैं | इसे इन्टरनेट से कनेक्ट कर इन्टरनेट पर उपलब्ध विभिन्न पाठ्य सामग्रियों , वीडियो आदि को एक्सेस किया जा सकता है | कुल मिलाकर
डिजिटल बोर्ड एक बहुआयामी औज़ार है जिससे शिक्षण प्रक्रिया बहुत सरल और प्रभावी
बनाई जा सकती है | इससे अध्यापक के समय और श्रम की बचत होती
है क्योंकि इस पर सारा काम बहुत त्वरित
गति से होता है | अपनी अन्यान्य खूबियों के साथ इस पर
वे सभी काम किए जा सकते हैं जिन्हें अध्यापक ब्लैक बोर्ड /
व्हाइट बोर्ड पर करता है |
आधुनिक
तकनीकी का माध्यम होने के कारण कुछ पुराने शिक्षक डिजिटल बोर्ड के इस्तेमाल से दूर भागते हैं | वे इसे झंझट का काम समझते हैं और परंपरागत
तरीके से चॉक , डस्टर का प्रयोग करके ही पढ़ाना बेहतर समझते
हैं | ये उन शिक्षकों का भ्रम और झिझक भर ही है | एक बार ये झिझक टूट जाये तो डिजिटल बोर्ड का प्रयोग ज्यादा आसान और
सुविधाजनक है | हम कई बार अपनी पूर्वधारणाओं से मुक्त नहीं
हो पाते हैं और हर नयी चीज का प्रयोग करने से पहले आशंकाओं के भरकर झिझकते हैं | अध्यापकों की यह झिझक टूटनी ही चाहिए | यदि आप समय
के साथ अपने को अपडेट नहीं करेंगे तो आप अप्रासंगिक हो जाएँगे | हम अपनी झिझक के चलते संसाधनों के समुचित प्रयोग से विद्यार्थियों को
वंचित नहीं कर सकते | पहले मैं खुद डिजिटल बोर्ड के इस्तेमाल
से झिझकता था लेकिन अपने कुछ नौजवान शिक्षक साथियों को इसका इस्तेमाल करते देख
हिम्मत बढ़ी | धीरे-धीरे सीखा , प्रयास
किया और आज मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ मैं अब शिक्षण-कार्य ज्यादा प्रभावी
ढंग से कर पा रहा हूँ | अपने संकोच से उबर कर मैं
विद्यार्थियों के साथ एक बड़ा अन्याय करने से बच गया | इस
विषय में एक आखिरी बात कहना चाहूँगा कि आज की पीढ़ी तकनीकी मामले बहुत तेज है | कंप्यूटर का ज्ञान हमारे विद्यार्थियों को हमसे ज्यादा है तो डिजिटल
बोर्ड के इस्तेमाल का तरीका हमें अपने विद्यार्थियों की मदद से सीखना पड़े तो इसमें
भी कोई हर्ज नहीं है | आखिर जितना कुछ विद्यार्थी हमसे सीखते
हैं उससे कहीं ज्यादा हम भी विद्यार्थियों से सीखते हैं |
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