आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है .
बिस्मिल,भगत,खुदीराम से कितने ही ,
बलिदानी हंसकर फांसी पर झूल गये .
गांधी,नेहरू क्यों वर्षों तक जेल रहे ,
आज़ादी क्यों मिली आज हम भूल गये .
भूल गये हम वीर शहीदों का सपना ,
भूल गये हम अर्थ सभी आज़ादी के .
पैंसठ सालों की आज़ादी में अब तक ,
हमने बस अनुबन्ध लिखे बरबादी के .
भूख-गरीबी अब तक है, बेकारी है ,
हर चेहरे पर चस्पा इक लाचारी है .
जिधर देखिए सुविधाओं का टोंटा है ,
आज व्यवस्था का हर पुर्ज़ा खोटा है .
आम आदमी मंहगाई से टूट गया ,
उसके घर में छाया अभी अंधेरा है .
कहने को तो आज़ादी का सूर्य उगा ,
लेकिन अब भी दूर बहुत सवेरा है .
जितना कहता हूं उससे ज़्यादा समझो ,
मेरी तरह दोस्त आप भी टूटे हो ,
आज मुखर हो स्वर दो अपनी पीड़ा को ,
कह दो भीतर-भीतर कितने रूठे हो .
तोड़ धैर्य की सीमाओं का बांध बहो ,
सोचो आखिर क्योंकर इतना टूटे हो .
कह दो सत्ता में बैठे मक्कारों से ,
झूठे हो झूठे हो तुम सब झूठे हो .
जिन जख़्मों को खाकर पायी आज़ादी ,
उन जख़्मों अभी दवाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है .............
मित्र सदन में जिनको हमने भेजा था ,
सोचा था खुशहाली लेकर आयेंगे .
संविधान की मर्यादा में रहकर ये ,
भारत मां की बगिया को महकायेंगे .
किन्तु हमारा सोचा सारा व्यर्थ गया ,
खुशहाली की जगह मिली बदहाली है .
हर कुर्सी पर बैठ गये अब डाकू हैं ,
राजनीति बन गयी आज दलाली है .
झूठे सपने दिखलाने में शर्म नहीं ,
देश लूटकर खा जाने में शर्म नहीं .
खुद को जनता का सेवक बतलाते हैं ,
इनकी फोटो हर थाने में, शर्म नहीं .
जाने कितने राजा हैं, कलमाड़ी हैं ,
जाने कितनी मायायें हैं, शीलायें हैं ,
कितने मुन्ना-मुन्नी हैं बदनाम यहां ,
सत्ता मद में चूर हुए बौराये हैं .
अपने हिस्से दो रोटी के लाले हैं ,
और उधर घोटाले ही घोटाले हैं .
इनके पापों की गगरी है छलक रही ,
जनता के भीतर भी ज्वाला भड़क रही .
ज्वाला को दावानल बन जाने दो ,
एक लहर अब पुन: क्रान्ति की आने दो .
सड़को पर आ जाओ सब भारतवासी ,
आज दिखा दो अपनी भी ताकत खासी .
संसद से चौराहे तक सड़ चुकी उसी ,
भ्रष्ट तन्त्र की अभी सफाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ...........
आज हजारे ने हुंकार लगायी है ,
अब तक सोये रहे मगर अब जग जायें .
घर से निकलें आओ हम सैलाब बनें ,
असली ताकत जनता है ये दिखलाये .
गली-गली हर दरवाजे पर अनशन हो ,
गली-गली में धरना और प्रदर्शन हो .
लाठी गोली चले भले बम फट जायें ,
यही समय है अड़ जायें हम डट जायें .
जेल चलें या गोली खाकर मर जायें ,
मगर देश के लिए आज कुछ कर जायें .
अभी गरम है लोहा बढ़कर वार करें ,
अभी फैसला आर करें या पार करें .
लोकपाल जनता का लेकर आयेंगे ,
चोरों को उनकी औकात बतायेंगे .
शोषण का अब कहीं न कोई राज चले ,
गांधी जी का केवल यहां सुराज चले .
है महाकाल का क्षण इसका आह्वान सुनो ,
अगर लहू में कुछ तरूणाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ............
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है .
बिस्मिल,भगत,खुदीराम से कितने ही ,
बलिदानी हंसकर फांसी पर झूल गये .
गांधी,नेहरू क्यों वर्षों तक जेल रहे ,
आज़ादी क्यों मिली आज हम भूल गये .
भूल गये हम वीर शहीदों का सपना ,
भूल गये हम अर्थ सभी आज़ादी के .
पैंसठ सालों की आज़ादी में अब तक ,
हमने बस अनुबन्ध लिखे बरबादी के .
भूख-गरीबी अब तक है, बेकारी है ,
हर चेहरे पर चस्पा इक लाचारी है .
जिधर देखिए सुविधाओं का टोंटा है ,
आज व्यवस्था का हर पुर्ज़ा खोटा है .
आम आदमी मंहगाई से टूट गया ,
उसके घर में छाया अभी अंधेरा है .
कहने को तो आज़ादी का सूर्य उगा ,
लेकिन अब भी दूर बहुत सवेरा है .
जितना कहता हूं उससे ज़्यादा समझो ,
मेरी तरह दोस्त आप भी टूटे हो ,
आज मुखर हो स्वर दो अपनी पीड़ा को ,
कह दो भीतर-भीतर कितने रूठे हो .
तोड़ धैर्य की सीमाओं का बांध बहो ,
सोचो आखिर क्योंकर इतना टूटे हो .
कह दो सत्ता में बैठे मक्कारों से ,
झूठे हो झूठे हो तुम सब झूठे हो .
जिन जख़्मों को खाकर पायी आज़ादी ,
उन जख़्मों अभी दवाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है .............
मित्र सदन में जिनको हमने भेजा था ,
सोचा था खुशहाली लेकर आयेंगे .
संविधान की मर्यादा में रहकर ये ,
भारत मां की बगिया को महकायेंगे .
किन्तु हमारा सोचा सारा व्यर्थ गया ,
खुशहाली की जगह मिली बदहाली है .
हर कुर्सी पर बैठ गये अब डाकू हैं ,
राजनीति बन गयी आज दलाली है .
झूठे सपने दिखलाने में शर्म नहीं ,
देश लूटकर खा जाने में शर्म नहीं .
खुद को जनता का सेवक बतलाते हैं ,
इनकी फोटो हर थाने में, शर्म नहीं .
जाने कितने राजा हैं, कलमाड़ी हैं ,
जाने कितनी मायायें हैं, शीलायें हैं ,
कितने मुन्ना-मुन्नी हैं बदनाम यहां ,
सत्ता मद में चूर हुए बौराये हैं .
अपने हिस्से दो रोटी के लाले हैं ,
और उधर घोटाले ही घोटाले हैं .
इनके पापों की गगरी है छलक रही ,
जनता के भीतर भी ज्वाला भड़क रही .
ज्वाला को दावानल बन जाने दो ,
एक लहर अब पुन: क्रान्ति की आने दो .
सड़को पर आ जाओ सब भारतवासी ,
आज दिखा दो अपनी भी ताकत खासी .
संसद से चौराहे तक सड़ चुकी उसी ,
भ्रष्ट तन्त्र की अभी सफाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ...........
आज हजारे ने हुंकार लगायी है ,
अब तक सोये रहे मगर अब जग जायें .
घर से निकलें आओ हम सैलाब बनें ,
असली ताकत जनता है ये दिखलाये .
गली-गली हर दरवाजे पर अनशन हो ,
गली-गली में धरना और प्रदर्शन हो .
लाठी गोली चले भले बम फट जायें ,
यही समय है अड़ जायें हम डट जायें .
जेल चलें या गोली खाकर मर जायें ,
मगर देश के लिए आज कुछ कर जायें .
अभी गरम है लोहा बढ़कर वार करें ,
अभी फैसला आर करें या पार करें .
लोकपाल जनता का लेकर आयेंगे ,
चोरों को उनकी औकात बतायेंगे .
शोषण का अब कहीं न कोई राज चले ,
गांधी जी का केवल यहां सुराज चले .
है महाकाल का क्षण इसका आह्वान सुनो ,
अगर लहू में कुछ तरूणाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ............
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’