बुधवार, 29 मार्च 2017


यूं तो कहने को हम आधुनिक हो गए ,
सुख के दिन जिंदगी में क्षणिक हो गए .
सामना सच का करने लगे हैं सभी ,
'मूल्य' सच के सभी काल्पनिक हो गए .
गांधी ,गौतम के इस देश में जाने क्यों ,
 हर तरफ क्रूर-निर्मम वधिक हो गए .
हर तरफ आसुरी वृत्तियाँ हैं यहाँ ,
राम दुर्लभ हैं , रावण अधिक हो गए .
भावनाएं हमारी लगे बेचने ,
चौथे खम्बे सभी अब वणिक हो गए .
जाति में , धर्म में , क्षेत्र में बंट गए ,
हम बहुत थे मगर अब तनिक हो गए .
प्रेम में इस कदर आत्मिक हम हुए ,
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर वायविक हो गए .
शब्द की जबसे ताकत मिली 'शम्स ' को ,
वो मुखर हो गए , साहसिक हो गए .
और इसी गज़ल में एक शेर हज़ल का भी गौर फरमाएं -
जब घोटाले में पकड़े गए आप तो ,
दिल की धड़कन बढ़ी और 'सिक ' हो गए .

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