ग़ज़लें
डा.
दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
बताऊँ कैसे तुम्हें क्या है अपना हाल मियाँ ,
यहाँ तो जिंदगी ही बन गयी सवाल मियाँ .
बड़ा है शोर तरक्की का हर तरफ लेकिन ,
हमें नसीब नहीं अब भी रोटी-दाल मियाँ .
हमारे दौर का अहसास मर गया शायद ,
किसी भी अश्क को मिलता नहीं रुमाल मियाँ .
भरोसा करके जिन्हें रहनुमा चुना हमनें ,
हमारे हक का वही काट रहे माल मियाँ .
समझ गयी है तुम्हारा फरेब हर मछली ,
चलो समेट लो अब तुम भी अपना जाल मियाँ .
हैं कौन लोग लुटेरे हमारी खुशियों के ,
हमारे मन में भी अब उठते हैं सवाल मियाँ ..
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वक़्त के
सांचे में अब तुम
भी ढलो ऐ शम्स
जी ,
छल रहे
हैं जो तुम्हें उनको
छलो ऐ शम्स जी
.
सब अंधेरा
बांटते हैं इस नगर
में आजकल ,
चाहते हो
रोशनी तो खुद जलो
ऐ शम्स जी .
क्या नहीं
होता इरादों में अगर
हो जान तो ,
हौसलों की
बांह थामें बढ़ चलो
ऐ शम्स जी .
ये नदी
है प्यार की लम्बी
बहुत गहरी बहुत ,
डूब जाओगे
न इसकी थाह लो
ऐ शम्स जी .
आपके अशआर
सुनकर कौन है जो
दाद दे ,
गूंगे-बहरों
की सभा से फूट
लो ऐ शम्स जी
.
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यूं तो कहने
को हम आधुनिक हो गए ,
सुख के दिन जिंदगी में क्षणिक हो गए .
सामना सच का करने लगे हैं सभी ,
'मूल्य' सच के सभी काल्पनिक हो गए .
गांधी ,गौतम के इस देश में जाने क्यों ,
हर तरफ क्रूर-निर्मम वधिक हो गए .
हर तरफ आसुरी वृत्तियाँ हैं यहाँ ,
राम दुर्लभ हैं , रावण अधिक हो गए .
भावनाएं हमारी लगे बेचने ,
चौथे खम्बे सभी अब वणिक हो गए .
जाति में , धर्म में , क्षेत्र में बंट गए ,
हम बहुत थे मगर अब तनिक हो गए .
प्रेम में इस कदर आत्मिक हम हुए ,
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर वायविक हो गए .
शब्द की जबसे ताकत मिली 'शम्स ' को ,
वो मुखर हो गए , साहसिक हो गए .
जब घोटाले में पकड़े गए आप तो ,
दिल की धड़कन बढ़ी और 'सिक ' हो गए .
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सुख के दिन जिंदगी में क्षणिक हो गए .
सामना सच का करने लगे हैं सभी ,
'मूल्य' सच के सभी काल्पनिक हो गए .
गांधी ,गौतम के इस देश में जाने क्यों ,
हर तरफ क्रूर-निर्मम वधिक हो गए .
हर तरफ आसुरी वृत्तियाँ हैं यहाँ ,
राम दुर्लभ हैं , रावण अधिक हो गए .
भावनाएं हमारी लगे बेचने ,
चौथे खम्बे सभी अब वणिक हो गए .
जाति में , धर्म में , क्षेत्र में बंट गए ,
हम बहुत थे मगर अब तनिक हो गए .
प्रेम में इस कदर आत्मिक हम हुए ,
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर वायविक हो गए .
शब्द की जबसे ताकत मिली 'शम्स ' को ,
वो मुखर हो गए , साहसिक हो गए .
जब घोटाले में पकड़े गए आप तो ,
दिल की धड़कन बढ़ी और 'सिक ' हो गए .
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‘तंत्र ’ तो रंगीनियों में मस्त
है ,
‘लोक’ है बदहाल ,बेहद पस्त है .
तन भले ही हो गया सन्यस्त है ,
मन विकारों से अभी तक ग्रस्त है
.
खुद से मिलने की नहीं फुर्सत
उसे ,
आज का हर व्यक्ति इतना व्यस्त
है .
देखकर कीमत न चौंकें मान्यवर ,
इसमें ‘सुविधा-शुल्क’ भी
विन्यस्त है .
रहनुमाओं लूट लो जी भर इसे ,
देश इसका हो चुका अभ्यस्त है .
‘शम्स’ की आँखों में सपने हैं
अभी ,
वो नए कल के लिए आश्वस्त है .
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
मोबाइल -09559304131
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