बुधवार, 8 मार्च 2017

क्रूर दिसंबर सोलह जैसी रात न अब फिर से आये .
               बेटी-बहनों के तन-मन को घायल कोई न कर पाए .
होनहार थी काबिल थी चंचल थी थोड़ी तेज थी .
भारत की इक बेटी अपनी खुशियों से लबरेज थी .
आँखों में जाने ही कितने सपनों का आकाश था .
इन सपनों को सच करने का मन में दृढ़ विश्वास था .
लेकिन उसके कच्चे सपने बीच राह में टूट गए .
जाने क्यूँ कर आज विधाता उस बिटिया से रूठ गए .
लौट रही थी बस से अपने घर को इक दिन रात में .
सुख-दुःख का इक सच्चा साथी भी था उसके साथ में .
झपट पड़े छह वहशी जिनके मन में पाप समाया था .
मार-मार करके उन दोनों को अधमरा बनाया था .
सबने उस बिटिया की अस्मत बारी बारी लुटीh थी .
और दरिन्देपन की सारी हद उस बस में टूटी थी .
मरा समझ कर फिर दोनों को बीच सड़क पर फेंक दिया .
मानवता को शर्मसार कर देने वाला काम किया .
               सिसक उठी थी धरती उस दिन अम्बर जम कर रोया था .
               मानवता के नभ पर काले-काले बादल थे छाये
               क्रूर दिसंबर सोलह जैसी रात न अब फिर से आये .
 लड़ी बहुत पर आखिर में वो बेटी मौत से हारी थी .
जीने की इच्छा पर वहशीपन की पीड़ा भारी थी .
कहो दामिनी कहो निर्भया या फिर कोई नाम दो .
बहन-बेटियों के सपनों को मत ऐसा अंजाम दो .
भारत में तो नारी देवी जैसी पूजी जाती है .
वेद-पुरानों में नारी की महिमा गाई जाती है .
नारी घर की शोभा है ये लक्ष्मी है कल्याणी है .
नारी जग की जननी है विद्या है ज्ञान की वाणी है .
फिर क्यूँ आखिर पग-पग पर नारी अपमानित होती है .
नारी होने को अभिशाप समझकर घुट-घुट रोती है .
कभी गर्भ में आते ही बिटिया को मारा जाता है .
कभी लोभ की ज्वाला में ज़िंदा झुलसाया जाता है
नारी नहीं भोग्या केवल कृति है ईश्वर की अनुपम
प्रेम,दया ,ममता , करुणा का मिलता है इसमें संगम .
          रोम-रोम में प्यार बसा दुनिया को यही सजाती है ,
          प्रेम मिले तो करे समर्पण फिर अपना सर्वस्व लुटाये  .
          क्रूर दिसंबर सोलह जैसी रात न अब फिर से आये .
नारी की लज्जा को हारते लज्जा तनिक न आती है .
भारत माँ की गरिमा ऐसे लोगों से गिर जाती है .
भारत में अब कोई दामिनी फिर न यूँ बेमौत मरे .
कोई दरिंदा ऐसा करने से पहले सौ बार डरे .
सरे आम फांसी दी जाए ऐसे नीच कमीनों को .
किया जाय संगीनों से फिर छलनी इनके सीनों को .
बलात्कार करने वालों को ऐसा दण्ड दिया जाए .
इनके तन को काट-काट कर सौ-सौ खण्ड किया जाए .
बदल रहा है समय साथियों हम सब भी खुद को बदलें
नारी का सम्मान करे अब और समय के साथ  चलें .
बहुत हुआ अब नारी को समता का अधिकार मिले .
नहीं वासना आँखों में अब श्रद्धापूरित प्यार मिले .
जो समाज महिलाओं का सम्मान नहीं कर पाता है .
सच मानो फिर वो समाज धीरे-धीरे मिट जाता है .
               अभी न संभले तो फिर इसका भी परिणाम भुगतना होगा .
               अबला नारी जाग गई तो कहीं न दुर्गा बन जाए .
               क्रूर दिसंबर सोलह जैसी रात न अब फिर से आये .


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