शुक्रवार, 24 नवंबर 2023

सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes)

 

सीखने के प्रतिफल

(Learning Outcomes)

वे दक्षतायें और योग्यतायें सीखने के प्रतिफल कहलाती हैं जिन्हें एक विद्यार्थी को पाठ्यक्रम समाप्त होने के बाद हासिल कर लेना चाहिए | सीखने के प्रतिफल वे अधिकतम निर्धारित लक्ष्य हैं जिन्हें एक विद्यार्थी को प्राप्त करना हैं | विद्यार्थी की परीक्षा के प्राप्तांक , उसकी भाषा , समझ , उसका परिवेश-ज्ञान आदि वे लक्ष्य हैं जिन्हें हासिल कर विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास होता है

तथा इन्हीं लक्ष्यों को ध्यान में रखकर अध्यापक को न केवल अपना शिक्षण-कार्य संपादित करना चाहिए बल्कि कक्षा से इतर अन्य सभी पाठ्य सहगामी क्रियाओं का आयोजन भी इन्हीं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए करना चाहिए |

दरअसल पारंपरिक तौर पर शिक्षा का आशय निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाकर परीक्षा का आयोजन कराना ही माना जाता रहा है | पढ़ाई से विद्यार्थी के मानसिक स्तर , सामान्य ज्ञान , उसके सामाजिकीकरण , उसके व्यक्तित्व में सकारात्मक परिवर्तन , उसके नैतिक सामाजिक मूल्यों का विकास आदि तमाम मुद्दों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया | इन्हीं सब कारणों से सीखने के प्रतिफल के विकास की आवश्यकता महसूस की गई ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि किस कक्षा में विद्यार्थी को क्या पढ़ाया जाये और उसके लिए किस प्रविधि का इस्तेमाल किया जाये कि विद्यार्थी उन दक्षताओं को प्राप्त कर सके जिन्हें सीखने के प्रतिफल में रखा गया है |

निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम-2009 के सरोकारों को ध्यान में रखकर 2017 में प्राथमिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल का विकास राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के द्वारा किया गया | सीखने के प्रतिफल की उपयोगिता और महत्त्व को देखते हुए माध्यमिक स्तर पर भी इसे विकसित किए जाने की मांग बढ़ी तत्पश्चात माध्यमिक स्तर पर भी सीखने के प्रतिफल का विकास किया गया |

इसी के साथ ही एनसीईआरटी ने सीखने के प्रतिफल को प्राप्त करने के लिए शिक्षण-प्रक्रियाओं का भी निर्माण किया है | हांलाकि ये शिक्षण-प्रक्रियाएं सुझाव के तौर पर हैं | एनसीईआरटी द्वारा ये भी स्पष्ट किया गया है कि अध्यापकगण संदर्भ और उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप शिक्षण-प्रक्रियाओं में समुचित परिवर्तन के लिए स्वतंत्र हैं | एनसीईआरटी द्वारा विकसित सीखने के प्रतिफल के दस्तावेज़ में माध्यमिक स्तर के सभी विषयों की न केवल दक्षताएं सम्मिलित की गई हैं बल्कि विस्तृत शिक्षण-प्रक्रियाओं को भी प्रस्तुत किया गया है जिनके प्रयोग से अपेक्षित दक्षताओं को विद्यार्थियों में विकसित किया जा सकता है |

सीखने के प्रतिफल को 21वीं सदी में आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखकर विकसित किया गया है जिससे विद्यार्थियों में समझ , कौशल व अनुप्रयोग की दक्षता का विकास हो | सीखने के प्रतिफल का उद्देश्य है की विद्यार्थी विषयगत ज्ञान तो प्राप्त करें ही वे एक अच्छे नागरिक भी बनें | वे सामाजिक दायित्वों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनें | सीखने के प्रतिफल में लैंगिक संवेदनशीलता व विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों के समावेशन का भी ध्यान रखा गया है | सीखने के प्रतिफल किसी विशिष्ट पाठ्यक्रम पर  आधारित न होकर कक्षा आधारित हैं और इसलिए किसी भी बोर्ड के विद्यार्थी की दक्षता का आकलन इसके माध्यम से किया जा सकता है |

सीखने के प्रतिफल का उद्देश्य प्रत्येक विद्यार्थी के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करना तो है ही साथ ही शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति की सटीक जाँच करना भी है | सीखने के प्रतिफल वे मानदंड हैं जिनके आधार पर विद्यार्थी के माता-पिता , शिक्षा-जगत से जुड़े प्रशासनिक अधिकारी व समुदाय के लोग बच्चे की सीखने की उन्नति के प्रति जागरूक हो सकते हैं |

यह विडम्बना ही है कि एनसीईआरटी द्वारा विकसित किए जाने के इतने समय बाद भी हमारे शिक्षक साथी सीखने के प्रतिफल के महत्त्व से अपरिचित हैं | एनसीईआरटी द्वारा सीखने के प्रतिफल की पुस्तिका सन-2019 में प्रकाशित की गई है जिसकी सॉफ्ट कॉपी एनसीईआरटी की वेबसाइट पर उपलब्ध है | अध्यापक बंधुओं को चाहिए कि इसे डाउनलोड कर अपने उपयोग व संदर्भ के लिए अपने पास रखना चाहिए | एनसीईआरटी के विक्रय केन्द्रों पर भी यह पुस्तिका बिक्री हेतु उपलब्ध रहती है | सीखने के प्रतिफल की यह पुस्तिका प्राथमिक व माध्यमिक दोनों स्तर के लिए अलग-अलग उपलब्ध है | यहाँ एनसीईआरटी की इसी पुस्तिका का एक अंश साभार प्रस्तुत है जिसमें कक्षा-10वीं के हिन्दी विषय के सीखने के प्रतिफल और शिक्षण-प्रक्रिया को शामिल किया गया है साथ ही समावेशी शिक्षण व्यवस्था के लिए कुछ सुझाव भी दिये गए हैं | मुझे विश्वास है कि इस अंश से आप सीखने के प्रतिफल को बेहतर ढंग से समझ पाने में सक्षम होंगे –

 

कक्षा-10                                                           विषय-हिन्दी

सीखने-सिखाने की प्रक्रिया

सीखने के प्रतिफल

सभी विद्यार्थियों को समझते हुए सुनने, बोलने, पढ़ने, लिखने और परिवेशीय सजगता को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कार्य करने के अवसर और प्रोत्साहन दिए जाएँ ताकि-

1-संगीत , लोक-कलाओं , फिल्म , खेल आदि की भाषा पर पाठ पढ़ने या कार्यक्रम के दौरान ग़ौर करने / सुनने के बाद संबन्धित गतिविधियां कक्षा में हों | विद्यार्थियों को प्रेरित किया जाये कि वे आस-पास की ध्वनियों और भाषा को ध्यान से सुनें \

2-उन्हें इस बात के अवसर मिलें कि वे रेडियो और टेलीवीजन पर खेल , फिल्म , संगीत आदि से संबन्धित कार्यक्रम देखें और उनकी भाषा लय , संचार-प्रभाविता आदि पर चर्चा करें |

3-रेडियो और टेलीविजन पर राष्ट्रीय , सामाजिक चर्चाओं को सुनने/देखने और सुनने/सुनाने तथा उन पर टिप्पणी करने के अवसर हों |

4-अपने आस-पास के लोगों की जरूरतों को जानने के लिए उनसे साक्षात्कार और बातचीत के अवसर सुलभ हों | ऐसी गतिविधियाँ पाठ्यक्रम का हिस्सा हों |

5-हिन्दी के साथ-साथ अपनी भाषा की सामाग्री पढ़ने-लिखने (ब्रेल तथा अन्य संकेत भाषा में भी ) और उन पर बातचीत की आज़ादी हो |

6-अपने अनुभवों को स्वतंत्र ढंग से स्वयं की भाषा में लिखने के अवसर हों |

7-अपने परिवेश , समय और समाज से संबन्धित रचनाओं को पढ़ने और उन पर चर्चा करने के अवसर हों |

8-अपनी भाषा गढ़ते हुए लिखने की स्वतन्त्रता हो |

9-सक्रिय और जागरूक बनाने वाली रचनाएँ , अखबार , पत्रिकाएँ , फिल्म और अन्य दृश्य-श्रव्य (श्रव्य-दृश्य) सामग्री को देखने , सुनने , पढ़ने और लिखकर अभिव्यक्त करने संबंधी गतिविधियाँ हों |

10-कल्पनाशीलता और सृजनशीलता को विकसित करने वाली गतिविधियों , जैसे – अभिनय , भूमिका निर्वाह (रोल-प्ले) , कविता पाठ , सृजनात्मक लेखन , विभिन्न स्थितियों में संवाद आदि के आयोजन हों तथा उनकी तैयारी से संबन्धित स्क्रिप्ट (पटकथा) लेखन और रिपोर्ट लेखन के अवसर हों |

11-अपने माहौल और समाज के बारे में स्कूल तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अपनी राय देने के अवसर हों |

12-कक्षा में भाषा-साहित्य की विविध छवियों/विधाओं के अंतरसम्बन्धों को समझते हुए उनके परिवर्तनशील स्वरूप पर चर्चा हो , जैसे – आत्मकथा , जीवनी , ससमरण , कविता , कहानी , निबंध आदि |

13-भाषा-साहित्य के सामाजिक-सांस्कृतिक-सौन्दर्यात्मक पक्षों पर चर्चा/विश्लेषण करने के अवसर हों |

14-संवेदनशील मुद्दों पर आलोचनात्मक विचार विमर्श के अवसर हों , जैसे – जाती , धर्म , रीति-रिवाज , जेंडर आदि |

15-कृषि , लोक-कलाओं , हस्त-कलाओं , लघु-उद्योगों को देखने और जानने के अवसर हों और उनसे संबन्धित शब्दावली को जानने व उनके उपयोग के अवसर हों |

16-कहानी , कविता , निबंध आदि विधाओं में व्याकरण के विविध प्रयोगों पर चर्चा के अवसर हों |

17-विद्यार्थी को अपनी विभिन्न भाषाओं के व्याकरण से तुलना/समानता देखने के अवसर हों |

18-रचनात्मक लेखन , पत्र-लेखन , टिप्पणी , अनुच्छेद –गद्य-पद्य के सभी रूपों में , निबंध , यात्रा-वृत्तान्त आदि लिखने के अवसर हों |

19-उपलब्ध सामग्री एवं भाषा में व्याकरण के मौलिक प्रयोग की चर्चा एवं विश्लेषण के अवसर हों |

20-दैनिक जीवन में भाषा के उपयोग के विविध प्रकार एवं परिवेशगत / अनुभव-आधारित रचनात्मक लेखन के अवसर उपलब्ध हों |

विद्यार्थी -

 

 

 

 

1-अपने परिवेशगत अनुभवों पर अपनी स्वतंत्र और स्पष्ट राय मौखिक एवं लिखित रूप में व्यक्त करते हैं। जैसे- मुसकान आजकल चुप क्यों रहती है? मुसकान को स्कूल में हम लाएँगे ।

2-अपने आस-पास और स्कूली साथियों की जरूरतों को अपनी भाषा में अभिव्यक्त करते हैं | जैसे- भाषण या वाद-विवाद में इन पर चर्चा करते हैं |

3-आँखों से न देख सक्ने वाले साथी की ज़रूरत की पाठयसामग्री को उपलब्ध कराने के संबंध में पुस्तकालयाध्यक्ष से बोलकर और लिखकर निवेदन करते हैं |

4-न बोल सक्ने वाले साथी की बात को समझकर अपने शब्दों में बताते हैं |

5-नई रचनाएँ पढ़कर उन पर परिवार एवं साथियों से बातचीत करते हैं |

6-रेडियो , टी.वी. या पत्र-पत्रिकाओं व अन्य श्रव्य-दृश्य संचार माध्यमों से प्रसारित , प्रकाशित रूप को , कथा साहित्य एवं रचनाओं पर मौखिक एवं लिखित टिप्पणी / विश्लेषण करते हैं | पत्रिका में प्रकाशित/प्रसारित विभिन्न पुस्तकों की समीक्षा पर अपनी टिप्पणी देते हुए विश्लेषण करते हैं |

7-अपने अनुभवों एवं कल्पनाओं को सृजनात्मक ढंग से लिखते हैं | जैसे – कोई यात्रा वर्णन , संस्मरण लिखना |

8-कविता या कहानी की पुनर्रचना कर पाते हैं | जैसे-किसी चर्चित कविता में कुछ पंक्तियाँ जोड़कर नई रचना बनाते हैं |

9-औपचारिक पत्र जैसे –प्रधानाचार्य , संपादक को अपने आस-पास की समस्याओं / मुद्दों को ध्यान में रखकर पत्र लिखते हैं |

10-रोज़मर्रा के जीवन से अलग किसी घटना / स्थिति विशेष में भाषा का काल्पनिक और सृजनात्मक प्रयोग करते हुए लिखते हैं – जैसे – दिन में रात , बिना बोले एक दिन , बिना आँखों के एक दिन आदि |

11-पाठ्य पुस्तकों में शामिल रचनाओं के अतिरिक्त अन्य कविता , कहानी , एकाँकी को पढ़ते-लिखते और मंचन करते हैं |

12-भाषा-साहित्य की बारीकियों पर चर्चा करते हैं | जैसे-विशिष्ट शब्द-भंडार , वाक्य-संरचना , शैली के प्रयोगिक प्रयोग , संरचना आदि |

13-विभिन्न साहित्यिक विधाओं के अंतर को समझते हुए उनके स्वरूप का विश्लेषण-निरूपण करते हैं |

14-विभिन्न साहित्यिक विधाओं को पढ़ते हुए व्याकरणिक संरचनाओं पर चर्चा/टिप्पणी करते हैं |

15-प्राकृतिक एवं सामाजिक मुद्दों , घटनाओं के प्रति अपनी प्रतिक्रिया को बोलकर / लिखकर व्यक्त करते हैं |

16-फिल्म एवं विज्ञापनों को देखकर उनकी समीक्षा लिखते हैं |

17-दृश्य माध्यम की भाषा का प्रयोग करते हैं |

18-परिवेशगत भाषा प्रयोगों पर प्रश्न करते हैं | जैसे-रेलवे स्टेशन /एयरपोर्ट/बस स्टैंड/ट्रक / आटो रिक्शा पर लिखी भाषाओं में एक ही तरह की बातों पर ध्यान देंगे |

19-अपने परिवेश को बेहतर बनाने के लिए सृजनात्मक लेखन करते हैं | जैसे-क्या-क्या

रिसाइकलिंग कर सकते हैं और पेड़ों को कैसे बचाएं ?

20 -हस्तकला , वास्तुकला , खेती-बाड़ी के प्रति अपना रुझान व्यक्त करते हैं तथा इनमें प्रयुक्त कलात्मक संदर्भों / भाषिक प्रयोगों को अपनी भाषा से जोड़कर बोलते-लिखते हैं |

 

 

 


 
समावेशी शिक्षण व्यवस्था के लिए कुछ सुझाव :-

कक्षा मे सभी बच्चों के लिए पाठ्यचर्या समान रहती है एवं कक्षा गतिविधियों में सभी बच्चों की प्रतिभागिता होनी चाहिए | विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों के लिए पाठ्यचर्या में कई बार रूपांतरों की आवश्यकता होती है | दिये गए सीखने के प्रतिफल समावेशी शिक्षण-व्यवस्था के लिए हैं , परंतु कक्षा में ऐसे भी बच्चे होते हैं , जिनकी कुछ विशेष आवश्यकताएँ होती हैं , जैसे- दृष्टि-बाधित , श्रव्य-बाधित इत्यादि | उन्हें अतिरिक्त सहयोग की आवश्यकता होती है | उनकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तावित हैं –

1-अध्यापक द्वारा विभिन्न प्रारूपों ( जैसे-पत्र लेखन , आवेदन आदि ) को मौखिक रूप से समझाया जा सकता है |

2-विद्यार्थियों को बोलकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए |

3-अध्यापक बातचीत के माध्यम से कक्षा में सम्प्रेषण कौशल को बढ़ा सकते हैं |

4-नए शब्दों की जानकारी ब्रेल लिपि में अर्थ सहित दी जानी चाहिए |

5-दैनिक गतिविधियों का मौखिक अर्थपूर्ण भाषिक अभ्यास |

6-शब्दों का विस्तृत उच्चारणगत हो , जैसे-मिनट , विशाल , समुद्र , छोटे जीव तथा कीट आदि |

7-प्रश्नों का निर्माण करना और बच्चों को उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित करना | साथ ही बच्चों को भी प्रश्न-निर्माण करने को कहना और स्वयं उनका उत्तर तलाश करने के लिए कहना |

8-उच्चारण सुधारने के लिए ऑडियो सामग्री का प्रयोग और कहानी सुनाना | अलग-अलग तरह की आवाज़ों की रिकार्डिंग करके , जैसे – झरना , हवा , लहरें , तूफान , जानवर और परिवहन , ताकि उनके माध्यम से संकल्पना / धारणा / विचार को समझाया जा सके |

9-विद्यार्थियों को एक-दूसरे से बातचीत के लिए प्रेरित करना |

10-अभिनय , नाटक और भूमिका-निर्वाह (रोल-प्ले) का प्रयोग करने के लिए प्रेरणा देना |

11-पढ़ाये जाने वाले विषय पर दृश्य-शब्दकोश की शीट तैयार की जाये | जैसे-शब्दों को चित्रों के माध्यम से दिखाया/ बताया जाये |

12-बोर्ड पर नए शब्दों को लिखना | यदि उपलब्ध हो तो शब्दकोश के शब्दों को चित्र के माध्यम से प्रयोग किया जाएँ |

13-नए शब्दों को बच्चों के रोज़मर्रा के जीवन में इस्तेमाल करना और विभिन्न प्रसंगों में उनका प्रयोग करना |

14-शीर्षक और विवरण के साथ दृशयात्मक तरीके से कक्षा में शब्दों का प्रयोग करना |

15-स्पष्ट रूप समझाने के लिए फुटनोट को उदाहरण के साथ लिखना |

16-सम्प्रेषण के विभिन्न तरीकों (जैसे-मौखिक एवं अमौखिक ग्राफिक्स , कार्टून्स , बोलते हुए गुब्बारे , चित्रों , संकेतों , ठोस वस्तुएँ एवं उदाहरण ) का प्रयोग करना |

17-लिखित सामग्री को छोटे-छोटे एवं सरल वाक्यों में तोड़ना, संक्षिप्त करना तथा लेखन को व्यवस्थित करना |

18-बच्चों को इस योग्य बनाना कि वे रोज़मर्रा की घटनाओं को साधारण ढंग से डायरी, वार्तालाप , जर्नल , पत्रिका इत्यादि के रूप में लिख सकें |

19-वाक्यों की बनावट पर आधारित अभ्यासों को बार-बार देना ताकि बच्चा शब्दों एवं बाकयों के प्रयोग को ठीक ढंग से सीख सके | चित्रों / समाचारों / समसामयिक घटनाओं से उदाहरणों का प्रयोग करे |

20-बच्चों के स्तर के अनुसार उन्हें पाठ्य सामग्री तथा संसाधन प्रदान करना ।
21-पाठ में आए मुख्य शब्दों पर आधारित तरह-तरह के अनुभवों को देना |
22-कलर कोडिंग (colour coding) प्रयोग करना (जैसे-स्वर और व्यंजन के लिए अलग-अलग रंगों का प्रयोग) , कांसेप्ट मैप (concept map) तैयार करना |

23-प्रस्तुतिकरण के लिए विभिन्न शैली एवं तरीकों, जैसेदृश्य, श्रव्य, प्रायोगिक शिक्षण इत्यादि का प्रयोग।
24-अनुच्छेदों को सरल बनाने के लिए उनकी जटिलता को कम किया जाए।
25-सामग्री को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए भिन्न-भिन्न विचारों , नए शब्दों के प्रयोग , कार्ड्स , हाथ की कठपुतली , वास्तविक जीवन के अनुभवों , कहानी प्रस्तुतीकरण , वास्तविक वस्तु एवं पूरक सामग्री का प्रयोग किया जा सकता है |
26-अच्छी समझ के लिए ज़रूरी है कि विषय से संबन्धित पृष्ठभूमि के बारे में पूर्वज्ञान से जोड़ते हुए नई सूचना दी जाये |

 27-कविताओं का पठन समुचित भावाभिव्यक्ति / अभिनय / गायन के साथ किया जाये |
28-पाठों के परिचय एवं परीक्षण खंड अथवा आकलन में विभिन्न समूहों के लिए विभिन्न प्रकार के प्रश्नों की रचना की जा सकती है|

29-पठन-कार्य को अच्छा बनाने के लिए दो-दो बच्चों के समूह के द्वारा पाठ्यसामग्री को प्रस्तुत करवाया जाये |

30-कठिन शब्दों के लिए शब्दों के अर्थ या पर्यायवाची उन शब्दों के साथ ही कोष्ठक में लिखे जाएँ | जिन शब्दों की व्याख्या ज़रूरी हो उन्हें व्याख्यायित किया जाये तथा सारांश को रेखांकित किया जाये |

  

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