फागुनी जवानी है ,सावनी जवानी है ,
वक़्त के गुलिस्तां की इक कली जवानी है .
सांस-सांस महकी है,अंग-अंग महका है ,
मन में बस गयी खुशबू, संदली जवानी है .
जो भी उतरा डूबा है तेज धार में इसकी ,
तोड़ कर किनारों को जब बही जवानी है .
दिन का चैन रातों की नींद जिसने छीनी है ,
बेरहम सितमगर-सी लग रही जवानी है .
सो गयी है जब बेसुध ज़िंदगी के बिस्तर पर,
वक़्त के अंधेरों में खो गयी जवानी है .
दुश्मनों पे झपटी है आग की लहर बनकर ,
जो वतन के काम आयी बस वही जवानी है .
डा.दिनेश शम्स
वक़्त के गुलिस्तां की इक कली जवानी है .
सांस-सांस महकी है,अंग-अंग महका है ,
मन में बस गयी खुशबू, संदली जवानी है .
जो भी उतरा डूबा है तेज धार में इसकी ,
तोड़ कर किनारों को जब बही जवानी है .
दिन का चैन रातों की नींद जिसने छीनी है ,
बेरहम सितमगर-सी लग रही जवानी है .
सो गयी है जब बेसुध ज़िंदगी के बिस्तर पर,
वक़्त के अंधेरों में खो गयी जवानी है .
दुश्मनों पे झपटी है आग की लहर बनकर ,
जो वतन के काम आयी बस वही जवानी है .
डा.दिनेश शम्स
आचार्यवर,
जवाब देंहटाएंआज तो आपने जवानी के इतने जलवे दिखा दिए कि अपने वृद्ध होने पर थोड़ी शर्मिंदगी महसोस हो रही है.. लेकिन बड़ी मौज में लिखी हुई कविता है!!
सलिल वर्मा