मंगलवार, 16 अगस्त 2011

मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ............

आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है .
     बिस्मिल,भगत,खुदीराम से कितने ही ,
     बलिदानी हंसकर फांसी पर झूल गये .
     गांधी,नेहरू क्यों वर्षों तक जेल रहे ,
     आज़ादी क्यों मिली आज हम भूल गये .
     भूल गये हम वीर शहीदों का सपना ,
     भूल गये हम अर्थ सभी आज़ादी के .
     पैंसठ सालों की आज़ादी में अब तक ,
     हमने बस अनुबन्ध लिखे बरबादी के .
     भूख-गरीबी अब तक है, बेकारी है ,
     हर चेहरे पर चस्पा इक लाचारी है .
     जिधर देखिए सुविधाओं का टोंटा है ,
     आज व्यवस्था का हर पुर्ज़ा खोटा है .
     आम आदमी मंहगाई से टूट  गया ,
     उसके घर में छाया अभी अंधेरा है .
     कहने को तो आज़ादी का सूर्य उगा ,
     लेकिन अब भी दूर बहुत सवेरा है .
     जितना कहता हूं उससे ज़्यादा समझो ,
     मेरी तरह दोस्त आप भी टूटे हो ,
     आज मुखर हो स्वर दो अपनी पीड़ा को ,
     कह दो भीतर-भीतर कितने रूठे हो .
     तोड़ धैर्य की सीमाओं का बांध बहो ,
     सोचो आखिर क्योंकर इतना टूटे हो .
     कह दो सत्ता में बैठे मक्कारों से ,
     झूठे हो झूठे हो तुम सब झूठे हो .
जिन जख़्मों को खाकर पायी आज़ादी ,
उन जख़्मों अभी दवाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है .............
     मित्र सदन में जिनको हमने भेजा था ,
     सोचा था खुशहाली लेकर आयेंगे .
     संविधान की मर्यादा में रहकर ये ,
     भारत मां की बगिया को महकायेंगे .
     किन्तु हमारा सोचा सारा व्यर्थ गया ,
     खुशहाली की जगह मिली बदहाली है .
     हर कुर्सी पर बैठ गये अब डाकू हैं ,
     राजनीति बन गयी आज दलाली है .
     झूठे सपने दिखलाने में शर्म नहीं ,
     देश लूटकर खा जाने में शर्म नहीं .
     खुद को जनता का सेवक बतलाते हैं ,
     इनकी फोटो हर थाने में, शर्म नहीं .
     जाने कितने राजा हैं, कलमाड़ी हैं ,
     जाने कितनी मायायें हैं, शीलायें हैं ,
     कितने मुन्ना-मुन्नी हैं बदनाम यहां ,
     सत्ता मद में चूर हुए बौराये हैं .
     अपने हिस्से दो रोटी के लाले हैं ,
     और उधर घोटाले ही घोटाले हैं .
     इनके पापों की गगरी है छलक रही ,
     जनता के भीतर भी ज्वाला भड़क रही .
     ज्वाला को दावानल बन जाने दो ,
     एक लहर अब पुन: क्रान्ति की आने दो .
     सड़को पर आ जाओ सब भारतवासी ,
     आज दिखा दो अपनी भी ताकत खासी .
संसद से चौराहे तक सड़ चुकी उसी ,
भ्रष्ट तन्त्र की अभी सफाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ...........
     आज हजारे ने हुंकार लगायी है ,
     अब तक सोये रहे मगर अब जग जायें .
     घर से निकलें आओ हम सैलाब बनें ,
     असली ताकत जनता है ये दिखलाये .
     गली-गली हर दरवाजे पर अनशन हो ,
     गली-गली में धरना और प्रदर्शन हो .
     लाठी गोली चले भले बम फट जायें ,
     यही समय है अड़ जायें हम डट जायें .
     जेल चलें या गोली खाकर मर जायें ,
     मगर देश के लिए आज कुछ कर जायें .
     अभी गरम है लोहा बढ़कर वार करें ,
     अभी फैसला आर करें या पार करें .
     लोकपाल जनता का लेकर आयेंगे ,              
     चोरों को उनकी औकात बतायेंगे .
     शोषण का अब कहीं न कोई राज चले ,
     गांधी जी का केवल यहां सुराज चले .
है महाकाल का क्षण इसका आह्वान सुनो ,
अगर लहू में कुछ तरूणाई बाकी है .
आज़ादी का जश्न मना लें हम लेकिन ,
मत भूलें इक और लड़ाई बाकी है ............

डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’                                  

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