रविवार, 7 अगस्त 2011

‘शम्स’ रखता है आग सीने में

ख़ुशबुओं का हिसाब रखता है ,
वो जो नकली गुलाब रखता है .
उसका अहसास मर गया शायद ,
इसलिए वो किताब रखता है .
पूछता है जवाब औरों सॆ ,               
पहले जो खुद जवाब रखता है .
साथ देता है सच का सिर्फ़ वही ,
दिल में जो इन्क़लाब रखता है .
‘शम्स’ रखता है आग सीने में ,
और आंखों में आब रखता है .

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब दिनेश भाई!
    मकते में अपना परिचय दे डाला आपने और शायद आदमीयत का तकाजा भी यही है कि सीने में आग और आँखों में आब हो!!

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  2. उसका अहसास मर गया शायद ,
    इसलिए वो किताब रखता है ......bahut khub sir....

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