शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

बिना टिकट

कहानी :
बिना टिकट

                                     
हां भाई फैजाबाद!
मगर कोई न बोला तो कन्डक्टर ताव खाता बोल पड़ा ,
बोलते क्यों नही किसका टिकट बाकी है फ़ैजाबाद का ?
अरे भाई गाड़ी बढ़ाओ . इतनी गर्मी , कि जान जा रही है.
लो एक टिकट मेरा बना दो.......
आगे बैठी एक सवारी ने माथे से पसीना पोंछते हुए सौ का नोट बढ़ा दिया था कन्डक्टर की ओर .
फिर बस के सारे यात्री शोर मचाने लगे, गाड़ी आगे बढ़ाओ .........
चलो भाई ड्राईवर साहब टिकट बनता रहेगा ......
बीच में एक बूढ़ी स्त्री खीझकर चिल्लायी , मुझे तो बेहोशी आने लगी है उमस के मारे. मर-मरा गयी तो फंसोगे दो के दोनो .....
उसकी बात सुनकर अपनी सीट पर बैठे ड्राईवर ने ने मुड़कर देखा .
कन्डक्टर से आंखें चार हुई. फिर जाने क्या इशारेबाजी हुई, कि सवारियों से खचाखच हुई वह बस रेंगने लगी थी. उधर खड़ी सवारियों की भीड़ को धकियाता कन्डक्टर धीरे-धीरे आगे को सरकता जा रहा था . गाड़ी ने भी धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ ली थी . मगर सड़क पर भीड़ इस कदर थी कि वह बार-बार धीमी पड़ जाती , और कभी-कभी तो खड़ी भी हो जाती . आखिरकार कन्डक्टर टिकट बनाता सबसे पीछे की सीट तक जा पहुंचा.
कुछ देर बाद पूरी गाड़ी को बुक करके वह फिर अपनी कन्डक्टर सीट पर लौट आया . खड़े होकर उसने पूरी गाड़ी की सवारियां गिनीं . अपने टिकटों की गिनती की फिर माथा सिकोड़कर बोला ,
हां भाई कौन है जिसका टिकट रह गया है बनने से ?
पर कोई न बोला. उसने फिर पूछा, और फिर पूछा पर किसी का कोई जवाब नहीं.
अन्त में हारकर वह हर एक यात्री का टिकट चेक करने लगा.नगर की सीमा करीब-करीब समाप्त होने को थी . बैठी सवारियां आपस में बातें करने लगीं थीं . खड़ी सवारियां बैठे लोगों को देख-देखकर उनकी किस्मत से ईर्ष्या कर रही थीं . मगर पीछे से अचानक उठे शोर के चलते सबका ध्यान उधर को ही चला गया. सबने मुड़कर उस पिछली सीट की तरफ़ देखा जहां सफ़ेद कुर्ते-पाजामें मे बैठे दो युवको में से एक ने कन्डक्टर को चिढ़ाते हुए कहा ,
मैं तो इसी गाड़ी से जाऊंगा और ले भी तुम्हीं जाओगे. जहां तक टिकट की बात है तो क्या तुमने खुद का टिकट ले रखा है ?
कन्डक्टर उसकी इस बेतुकी बात पर खीझकर बोला ,
बातें मत बनाओ . मैं फिर कहता हूं टिकट ले लो. बिना टिकट मैं गाड़ी बढ़ने न दूंगा . चेकिंग हो गयी तो नौकरी मेरी नपेगी. तुम्हारा क्या  ...... उतरोगे और चल दोगे
आस-पास की सवारियों ने भी हस्तक्षेप किया,
भाई साहब ले क्यों नही लेते टिकट? कन्डक्टर सच ही तो कहता है.....
इस बात पर उसके साथी युवक ने लोगों को घूरकर देखा फिर बड़ी रोबीली आवाज़ में बोला,
आप लोग अपने-अपने से मतलब रखो. गाड़ी न कन्डक्टर की है न आपकी. यह पब्लिक की है , मेरा मतलब सरकारी. उसके बाद फिर कोई न बोला और कन्डक्टर अकेला ही कुछ देर उलझता रहा उन दोनों युवकों से.अन्तत: वह खीझकर चिल्लाया,
शुक्ला, गाड़ी रोको .         
उसका इतना कहना था कि ड्राईवर ने अचानक ब्रेक ले ली तो गाड़ी रुकती-रुकती चरमरा सी गयी. तेज ब्रेक के कारण खड़ी सवारियां बेतरतीब आगे को झुकती गयीं. मगर एक दूसरे को लगे धक्कों के बीच एक अर्धवयस्क सज्जन खुद को संभाल न सके और जा गिर एक बूढ़ी स्त्री पर. फिर पास खड़ी सवारियों ने दोनों को संभालकर उठ खड़ा किया. किसी ने पूछा चोट तो नहीं आयी...........
मगर बूढ़ी स्त्री उसकी अनसुनी करती उस अर्धवयस्क व्यकित पर बरस पड़ी, अन्धे हो गये हो क्या?
पीछे से एक ने चुटकी ली
अन्धे न होते तो आप पर क्यों गिरते.......
उसकी बात पर आस -पास के लोगों ने ठहाका लगाया.
मैं कहता हूं आप दोनो उतरो नीचे....
उस ठहाके के बीच पीछे से कन्डक्टर की ऊंची आवाज़ तैर गयी तो लोग हंसना छोड़ फिर पीछे को देखने लगे.
युवक बोला,
हिम्मत हो तो छू लो मुझे .... गाड़ी जब तक खड़ी रहेगी मैं भी तब तक बैठा रहूंगा......
तो फिर मैं कहता हूं गाड़ी यहां से इन्च भर भी आगे नहीं बढ़ेगी.
जंगल राज बना रखा है.....
कुछ ही पलों में यात्री फिर गर्मी और उमस से बेहाल होने लगे. कोई अखबार से पंखा झलने लगा तो कोई रुमाल से पसीना सुखाने लगा.
बस अब तक शहर की सीमा को पार न कर सकी थी.
एक यात्री बड़बड़ाया,
इस रोड पर तो साला रोज़ का यही नाटक है.हरामखोरी ने ही तो इस देश को बर्बाद कर रखा है......
दूसरा यात्री बोल पड़ा,
बताइए , ये भी नही सोचते कि कौन किस काम से निकला है.....किस पर कैसी मुसीबत है.....इन्हें तो बस.....
तब तक कन्डक्टर चिल्लाया,
शुक्ला, गाड़ी डिपो को वापस ले चलो. अब कहीं नहीं जायेगी ये गाड़ी.......मैं भी देखता हूं इन लोगों की दादागिरी. चलो चलकर अपनी सवारियों को शिफ़्ट कर दूंगा बनारस वाली गाड़ी में. वह बस अब लगने वाली होगी.....
सारे यात्री परेशान हो उठे. जाने कितनी देर बाद जायेगी दूसरी बस? दो लोगों के चलते पचासों लोग झेल जायेंगे.....
एक दो महिला यात्रियों ने उन उद्दण्डों से निवेदन तक कर डाला,
भैया , आप ही लोग दूसरी बस से निकलो. तुम्हें क्या पता कि कितने ज़रुरी काम से निकले हैं हम....
मगर युवक उनकी साफ अनसुनी करते दृढ़ता से बोल पड़े,
गाड़ी चाहे वापस डिपो ले चलो या वर्कशाप , हमें कोई फर्क नहीं पड़ता. कोई न कोई गाड़ी तो जायेगी और उससे हम भी जायेंगे.
अन्त में गाड़ी बस अड्डे वापस आ गयी थी. सभी यात्री चिड़चिड़ाते हुए बस से नीचे उतर आये. गुस्से से तमतमाया कन्डक्टर लम्बे डग भरता डिपो इंचार्ज को पूरे वाकये की सूचना देने चल पड़ा था.
फिर वही हुआ जैसा कन्डक्टर ने कहा था. बनारस डिपो की गाड़ी लग चुकी थी.और सभी यात्रियों को उसमें शिफ़्ट होना पड़ा था. करीब पूरा घण्टा बरबाद हो चुका था. कुछ देर बाद जब वह बस छूटने को हुई तो वही दोनों युवक जाने किधर से आये और तेज़ी से बस पर जा चढ़े. उन्हें देखते ही सवारियों के चेहरे फक हो गये. चिन्ता इस बात की , कि फिर वही नाटक, और बेमतलब वक़्त की बरबादी......
फिलहाल बस चल पड़ी और कुछ ही देर बाद नगर की सीमा पार कर गयी. कन्डक्टर अपनी सीट से उठा और जा पहुंचा उन दो युवकों के पास.
टिकट
हम नहीं लेते
तो फिर बस से उतर जाओ
हम नही उतरते
उतरनी पड़ेगा . कहते-कहते कन्डक्टर बुरी तरह झुंझला पड़ा फिर चीखता बोल पड़ा,
मैं आखिरी बार कहता हूं कि टिकट लो, या फिर बस से उतर जाओ
जवाब में फिर वही पुरानी बातें. दोनों के बीच गरमा-गरमी बढ़ती गयी तो कुछ यात्रियों से रहा न गया.
एक बोला , भाई क्यों हम लोगों का वक़्त बरबाद करते हो? एक बस छुड़वा दी तुमने अब दूसरी भी.......
तब कुछ स्त्रियां बड़े दीन भाव से बोल पड़ीं ,
टिकट ले लो भैया , पैसे न हों तो हम लोग मिलकर.......
यात्रियों की बातें सुनकर कन्डक्टर पिछली बस पर हुआ सारा माजरा समझ चुका था.उसने अपना सेल फोन निकाला और आर.एम. को मिला दिया. कुछ बातें हुईं. फिर उसने फोन जेब में रख लिया और बोल पड़ा ,
अरे वर्मा ,  गाड़ी पुलिस चौकी सहजनवा पर रोको.
तब तक एक युवक गरजता हुआ बोल पड़ा ,
पुलिस चौकी पर रोको या एस.पी. बंगले पर. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. एस.ओ. खुद आयेगा हमें रिसीव करने. चाय-पानी और स्वागत सत्कार ऊपर से.
कुंवर भैया का हुक्म है, बस हो या हवाई जहाज, तुम्हें टिकट नहीं लेना. राज अपना है,पाट अपना है.......अव्वल तो कोई बात होगी ही नहीं, और अगर होती भी है तो देख लेंगे हम कि कौन है साला जो........
स्थानीय विधायक की हनक और हस्तक्षेप से कौन नही वाकिफ़? इस रोड पर तो उनकी समानान्तर सरकार चलती है. पुलिस हो या प्रशासन ? किसकी मजाल जो उन्हें आंख उठाकर भी देख सके.
कैसी अजीब बात है कि दूसरों को धकियाने वाले ये वही कन्धे हैं जिन पर कानून और व्यवस्था लदी पड़ी है. ये वही माननीय हैं जिन पर जनता ने अपना भरोसा जताया है. जब इनके चमचे ऐसे हैं तो फिर ये खुद कैसे होंगे. जबकि देश का विकास इन्हीं के हाथों में गिरवी पड़ा है.  फिर क्या उम्मीद करें कि इनकी छ्त्रछाया में देश का विकास होगा या विनाश.....कैसी विडम्बना है कि सिस्टम के साथ रेप करने वाले ही हमसे सिस्टम मेन्टेन करने की अपील करते हैं......
तब तक स्टेयरिंग पर हाथ रखे ड्राईवर बोल पड़ा ,
हां तो बोलो क्या सच में ले चलूं गाड़ी पुलिस चौकी में?
कन्डक्टर बोल पड़ा,
सच नहीं तो क्या झूठ? मैं किसी से डरने वाला नहीं.
ऐसे लोगों को सही सबक सिखाकर रहूंगा मैं......
गाड़ी अब भी अपनी पूरी रफ़्तार से भागी जा रही थी.
ड्राईवर बुदबुदाया ,
सोच लो भाई...हमें क्या? तुम कहते हो तो यही करुंगा....मगर सुल्तानपुर के मौर्या की वारदात क्या भूल गये तुम ? वो भी तो पुलिस चौकी ही ले गया था अपनी गाड़ी . फिर अगले दिन....वह अकेला और दूसरी और दस-बारह गुण्डे.....ये कुंवर के हैं , वो राजा के थे....मौर्या पिटा भी और सस्पेंड भी हुआ.......अब तक बहाल नहीं हो सका है बेचारा......
ड्राईवर की बात सुनकर एक बुजुर्गवार बोल पड़े ,
जब सब कुछ जानते हो , फिर क्यों खांमखा लफड़ा मोल लेते हो ? बीच में चेकिंग हुई तो सारी बात साफ-साफ बता देना अपने अधिकारी से.......
कन्डक्टर कुछ सोच में पड़ गया. एक बार उस बुजुर्गवार को देखा , फिर ड्राईवर को. कुछ कहने ही जा रहा था कि पीछे से आवाज आयी ,
ड्राईवर गाड़ी रोको
ड्राईवर ने गाड़ी रोकी. दोनो युवक बस से नीचे आ गए.
बुदबुदाये , हमें तो बस यहीं तक आना था , इतने के लिए इस गधे ने.............
साला दो लाख से कम न लगाया होगा भर्ती होने में.......
गाड़ी चल पड़ी. कन्डक्टर ने गर्दन घुमाकर उन युवकों को देखा.
वे भी उसे ही देखे जा रहे थे अपनी विजयी मुस्कान के साथ.....






डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
वरिष्ठ प्रवक्ता : जवाहर नवोदय विद्यालय
ग्राम - घुघुलपुर , पोस्ट-देवरिया,
ज़िला - बलरामपुर-२७१२०१ , उ .प्र .
                                                 


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