गुरुवार, 4 अगस्त 2011

ग़ज़ल

आईने पर यक़ीन रखते हैं ,
वो जो चेहरा हसीन रखते हैं .
आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं .
दीन-दुखियों का है खुदा तब तो ,
आओ हम खुद को दीन रखते हैं .
जिनके दम पर है आपकी रौनक  ,
उनको फिर क्यों मलीन रखते हैं .
विषधरों के नगर में रहना है ,        
हम विवश होके बीन रखते है .
ये सियासत की फ़िल्म है जिसमें ,
सिर्फ़ वादों के सीन रखतें हैं          
             ----डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

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