ख़्वाहिश-ए-दिल हज़ार बार मरे ,
पर न इक बार भी किरदार मरे .
प्यार गुलशन करे है दोनो से ,
न तो गुल और न ही ख़ार मरे .
चल पड़े तो किसी की जान मरे ,
न चले तो छुरी की धार मरे .
ताप तन का उतर भी जाये मगर ,
कैसे मन पर चढा बुखार मरे .
ज़िन्दगी तू है अब तलक ज़िन्दा ,
मौत के दांव बेशुमार मरे .
डा. दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’
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